Tuesday 15 November 2011

यूपी के होंगे चार हिस्से ?



जैसे-जैसे देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां तेज़ हो रही हैं वैसे-वैसे राजनीतिक दल किसी भी तरह से जनता के विश्वास पर खरे उतरने की जुगत में भिड़ गए हैं। इसी कड़ी में प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भी घोषणा की है वो 21 नबंवर से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में सूबे को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव रखेंगी। कैबिनेट द्वारा पास किये गए इस प्रस्ताव को मीडिया के सामने रखते हुए मायावती ने कहा कि वो इस प्रस्ताव को विधान सभा में पास कराकर केंद्र सरकार पर राज्य का बंटबारा किये जाने को लेकर दबाव बनाएंगी। मायावती के मुताबिक इस चारों राज्यों के नाम पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश रखे होंगे। मायावती ने संवाददाओं के सवालों के जबाब देते हुए कहा कि यूपी इस समय देश में सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है और इसी कारण केंद्र सरकार इस पर अपना पूरा ध्यान नहीं देती है, नतीजतन राज्य का उतना विकास नहीं हो पा रहा है जितना कि होना चाहिए। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मायावती कहतीं हैं कि उनकी पार्टी हमेशा से ही छोटे राज्यों की पक्षधर रही है क्योंकि ये राज्यों के विकास के लिए ज़रूरी है। साथ ही केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि वो मुख्यमंत्री होने के नाते कई दफा राज्य को विशेष पैकेज दिये जाने की बात रख चुकीं हैं लेकिन अभी तक इस तरफ कोई प्रगति नहीं हुई है।

अब जिस तरह से मायावती छोटे राज्यों पर अपना दांव खेल रहीं हैं उससे साफ है कि वो पूरे मामले में केंद्र सरकार को फंसाना चाह रहीं हैं क्योंकि नए राज्यों को बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के ही पास होता है। वैसे ऐसा भी नहीं कि मायावती ने पहली बार यूपी को बांटे जाने का मुद्दा उठाया हो क्योंकि उनके अनुसार उन्होंने इससे पहले भी केन्द्र सरकारों को पत्र लिखे थे, लेकिन न तो केंद्र में उस समय की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कोई जबाव आया और न ही कांग्रेस ने इस दिशा में किसी तरह की कार्यवाई है। फिलहाल ये तो माना जा सकता है कि मायावती काफी अर्से से इस बात की दुहाई दे रहीं थीं कि यूपी को बांट देना चाहिए लेकिन इस बार जिस तरह से उन्होंने चुनावों से ठीक पहले इस मुद्दे को छेड़ा है उससे साफ हो जाता है कि वो सियासी फायदा उठाने के मकसद से ही इस चाल को चल रहीं हैं। यूं भी अभी से इस बात के स्वर तेज़ हो गए हैं कि मायावती अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए ही प्रदेश को बांटने की बात कर रही हैं। सूबे के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने भी खुले तौर पर कह दिया है कि वो हमेशा से यूपी को बांटने के खिलाफ रही है और आगे भी उसकी विचारधारा में कोई फर्क नहीं आएगा। भले ही सपा की इस भाषा में सियासत की बू आ रही हो लेकिन यहां अहम सवाल ये खड़ा होता है कि क्या यूपी को बांटने से इसका विकास हो सकेगा। इससे पहले उत्तरांचल, झारखंड और छत्तीसगढ़ को भी विकास के नाम पर अलग राज्य बनाया गया था, लेकिन इन राज्यों ने कितनी तरक्की की है ये बात किसी से छुपी हुई नहीं है। झारखंड में तो लगभग हर साल मुख्यमंत्रियों के बदले जाने ने नया रिकॉर्ड सा कायम कर दिया है। इसी तरह से उत्तरांचल और छत्तीसगढ़ की हालात भी कोई बहुत ज्यादा बेहतर नहीं कही जा सकती है। बहरहाल देश भर में तकरीबन दर्जनभर जगह नए राज्यों के लिए आंदोलन चलाए जा रहे हैं जिसमें तेंलगाना का मामला सबसे अधिक चर्चा में है। अब अगर एक ही राज्य से चार राज्यों को बनाने की बात निकलेगी तो ऐसा माना जा सकता है कि अलग राज्यों को बनाने की मांग करने वाले क्षेत्रों में और अधिक उग्र आंदोलन देखने को मिलें।



Saturday 12 November 2011

आखिर कब जागेगा प्रशासन



पिछले दिनों उत्तराखंड के हरिद्वार गायत्री परिवार के यज्ञ कार्यक्रम के दौरान मची भगदड़ में 20 लोगों के मरने की ख़बर सामने आई। ख़बर सुनकर बहुत दुख हुआ लेकिन इससे ज्यादा मायूसी प्रशासन की घओर लापरवाही के कारण हुई। अब यहां सबसे बड़ा मुद्दा ये उठता है कि प्रशासन आखिर कब इस तरह के आयोजनों को कराने की कला सीखेगा। हर महीने कहीं न कहीं से इस तरह की ख़बरें आ जातीं कि फलां मंदिद में भगदड़ से इतनी लोगों की मौत हुई। और तो और सेना की भर्ती के दौरान भी भगदड़ मचने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं लेकिन हर बार प्राशासन अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए नज़र आता है। सुरक्षा के नाम पर तमाम दावे प्रशासन की तरफ से ठोके तो जाते हैं लेकिन जब हालात बेकाबू होते हैं तो उनके पास बगले झांकने के सिवाए कोई काम नहीं होता है। हमेशा की तरह ही इस भगदड़ की जांच के आदेश दे दिये गए हैं लेकिन देखने वाली बात ये रहेगी है कि क्या इस जांच से कुछ सबक लिया जाता है। वहीं मरने वालों को मुआवजे के तौर पर राज्य सरकार और प्रधानमंत्री की तरफ से पांच लाख रूपए देने की बात कही गई है, लेकिन क्या इन पैसों को देखकर गमगीन परिवारों को सब्र आ सकता है।

जैसा कि अमूमन देखा गया है कि महिलाएं इस तरह के धार्मिक आयोजन में बड़ी तादाद में एकत्र होती हैं, तो यहां पर भी वहीं नज़ारा देखने को मिला क्योंकि मारने वालों सबसे अधिक महिलाएं थीं। जांच में जुटे अधिकारियों ने इस बाबत बताया भी कि इस हादसे में कम से कम 50 लोग घायल भी हुए हैं। इधर इस दर्दनाक घटना के बाद गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पंड्या ने नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए सभी तरह के कार्यक्रमों को रद्द करने के साथ ही शांति पाठ आयोजित करने का फैसला किया। उल्लेखनिए है कि गायत्री परिवार ने अपने संस्थापक श्रीराम शर्मा की जन्मशताब्दी के अवसर पर छह नवंबर से सोलह नवंबर के बीच यज्ञ सहित कई कार्यक्रम आयोजित किये है और इसमें भाग लेने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में भक्त यहां जमा हुए थे। प्रत्यक्षदर्शी इस घटना के लिए वीआईपी लोगों को भी ज़िम्मेदार मान रहे हैं क्योंकि प्रशासन सबसे ज्यादा उनकी खातिरदारी में लगा हुआ था। घटना स्थल मौजूद लोगों की मानें तो भीड़ इतनी अधिक हो गई थी कि पुलिसकर्मियों ने लोगों पर काबू पाने के लिए लाठी चला दी जिससे बचने के लिए लोग एक दूसरे पर गिरने लगे और इसी कारण भगदड़ मच गई। लेकिन शांतिकुंज के प्रमुख प्रभारी डॉ राम महेश मिश्रा ने दबी हुई जुबान में ही सही लेकिन ये माना कि उस दिन ज़्यादा वीआईपी मूवमेंट रहा, क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूल भी यहां आए हुए थे। इस दुखद घटना  से से खासे गमगीन नज़र आ रहे प्रमुख प्रभारी ने इस बच अपने साथ ही पुलिस का भी बचाव करते हुए साफ कर दिया कि इसके लिये किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। प्रभारी जी शायद ये बताने की कोशिश कर रहे होंगे कि जो वीआईपी आयोजन में आए थे तो उनको अधिक वरियता दिया जाना कहीं से भी गलत नहीं था। 


यूं भी आजतकल धार्मिक स्थालों पर अलग से वीआईपी लेन बनाने का चलन सा हो गया है। इस मसले पर बहस हो सकती है लेकिन सवाल ये है कि क्या भगवान के घर भी अमीर-गरीब का अलगाव किया जा सकता है। ख़ैर ऐसा हमेशा होता है कि इस तरह के धार्मिक कार्यक्रमों में भीड़ अनुमान से भी कहीं अधिक हो जाती है इसलिए प्रशासन को व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुख्ता इंतजाम करने चाहिए ताकि ऐसे अवसरों स्थिति को नियंत्रित रखा जा सके। वहीं जरूरत इस बात की भी है कि इस तरह के आयोजनों के लिए तैयारी में किसी तरह की चूक न बरती जाए। वहीं राज्यों सरकारों को भी दुख जताने से ज्यादा ध्यान इस बात पर देना चाहिए कि इस तरह के हादसों पर किस तरह से लगाम लगाई जाए ताकि खुशी के इन मौकों को मातम में बदलने से बचाया जा सके।

यात्रा बनी समस्या


यूं तो देश की राजधानी दिल्ली को यात्रा करने के मामले में सबसे बेहतर माना जाता है। इसकी वजह ये भी हो सकती है कि आज दिल्ली के पास मैट्रों से लेकर बढ़िया स्तर की लो प्लोर बसों का जखीरा है जो यात्रा का न सिर्फ आरामदायक बनाती है बल्कि अपनी बेहतर सर्विस के लिए भी इसको सराहा जाता है। लेकिन आजकल जिस तरह का हाल दिल्ली से नोएडा जाने वाली बसों का देखने को मिल रहा है उसने यात्रियों के सामने कई तरह की मुश्किलें पैदा कर दीं हैं।
सबसे पहली बात तो दिल्ली और नोएडा के बीच डीटीसी की बसों की तादाद बहुत ज्यादा कम है और लोगों को बस के इंतज़ार में घंटो तक खड़े रहना पड़ता है। महरौली से नोएडा जाने वाले रूट की हालत तो इसतनी खराब हो गई है कि ऑफिस के लिए जाने वाले लोगों को रोज़ लेट होना आम बात हो गई है। इसके अलावा नोएडा जाने वाली अधिकतक 34 नंबर की बसों को सिर्फ सरिता विहार तक ही चलाया जा रहा है। बसों के कम होने की वजह से भीड़ अधिक हगो जाती है जिसके कारण बसों में लड़ाई-झगड़ा और गाली-गलौंच होना आम बात हो गई है। राज्य सरकार का इस रूट पर ज़रा भी ध्यान नहीं है तभी इस रूट पर सुधार नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा इस रूट पर कई जगह जाम रहता जैसे संगम विहार, आली गांव और कालिंदी कुज पर लगने वाले रोज़ के जाम से लोग आजिज आ चुके हैं। छोटा से पुल होने कारण यहां पर रोज़ जाम लग जाता है। कभी-कभी तो ये जाम इतना ज्यादा होता है कि वाहन घंटों तक हिल तक नहीं पाते हैं।

इन सबके बावजूद बढ़ते किराए ने भी लोगों का हालात पतली कर रखी है। कुछ समय पहले की बात है जब लोग 10 रूपए के टिकट पर नोएडा में पहुंच जाते थे लेकिन अब तो हर सेक्टर की टिकट अलग कर दी गई है जिससे लोगों का काफी पैसा सिर्फ किराए में ही खर्च हो जाता है। इसके अलावा महीने के पास को भी मंहगा करके सरकार ने लोगों के साथ नाइंसाफी की है। एक आम यात्री होने के नाते मुझे इस तरह की परेशानियों से रोज़ दो चार होना पड़ता है। इसलिए मेरा सरकार से निवेदन है कि वो इस दिशा में काम करके स्थिति को संभाले नहीं तो ये समस्या दिन ब दिन बढ़ती है जाएगी।