पिछले दिनों उत्तराखंड के हरिद्वार गायत्री परिवार के यज्ञ कार्यक्रम के दौरान मची भगदड़ में 20 लोगों के मरने की ख़बर सामने आई। ख़बर सुनकर बहुत दुख हुआ लेकिन इससे ज्यादा मायूसी प्रशासन की घओर लापरवाही के कारण हुई। अब यहां सबसे बड़ा मुद्दा ये उठता है कि प्रशासन आखिर कब इस तरह के आयोजनों को कराने की कला सीखेगा। हर महीने कहीं न कहीं से इस तरह की ख़बरें आ जातीं कि फलां मंदिद में भगदड़ से इतनी लोगों की मौत हुई। और तो और सेना की भर्ती के दौरान भी भगदड़ मचने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं लेकिन हर बार प्राशासन अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए नज़र आता है। सुरक्षा के नाम पर तमाम दावे प्रशासन की तरफ से ठोके तो जाते हैं लेकिन जब हालात बेकाबू होते हैं तो उनके पास बगले झांकने के सिवाए कोई काम नहीं होता है। हमेशा की तरह ही इस भगदड़ की जांच के आदेश दे दिये गए हैं लेकिन देखने वाली बात ये रहेगी है कि क्या इस जांच से कुछ सबक लिया जाता है। वहीं मरने वालों को मुआवजे के तौर पर राज्य सरकार और प्रधानमंत्री की तरफ से पांच लाख रूपए देने की बात कही गई है, लेकिन क्या इन पैसों को देखकर गमगीन परिवारों को सब्र आ सकता है।
यूं भी आजतकल धार्मिक स्थालों पर अलग से वीआईपी लेन बनाने का चलन सा हो गया है। इस मसले पर बहस हो सकती है लेकिन सवाल ये है कि क्या भगवान के घर भी अमीर-गरीब का अलगाव किया जा सकता है। ख़ैर ऐसा हमेशा होता है कि इस तरह के धार्मिक कार्यक्रमों में भीड़ अनुमान से भी कहीं अधिक हो जाती है इसलिए प्रशासन को व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुख्ता इंतजाम करने चाहिए ताकि ऐसे अवसरों स्थिति को नियंत्रित रखा जा सके। वहीं जरूरत इस बात की भी है कि इस तरह के आयोजनों के लिए तैयारी में किसी तरह की चूक न बरती जाए। वहीं राज्यों सरकारों को भी दुख जताने से ज्यादा ध्यान इस बात पर देना चाहिए कि इस तरह के हादसों पर किस तरह से लगाम लगाई जाए ताकि खुशी के इन मौकों को मातम में बदलने से बचाया जा सके।
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