Saturday 12 November 2011

आखिर कब जागेगा प्रशासन



पिछले दिनों उत्तराखंड के हरिद्वार गायत्री परिवार के यज्ञ कार्यक्रम के दौरान मची भगदड़ में 20 लोगों के मरने की ख़बर सामने आई। ख़बर सुनकर बहुत दुख हुआ लेकिन इससे ज्यादा मायूसी प्रशासन की घओर लापरवाही के कारण हुई। अब यहां सबसे बड़ा मुद्दा ये उठता है कि प्रशासन आखिर कब इस तरह के आयोजनों को कराने की कला सीखेगा। हर महीने कहीं न कहीं से इस तरह की ख़बरें आ जातीं कि फलां मंदिद में भगदड़ से इतनी लोगों की मौत हुई। और तो और सेना की भर्ती के दौरान भी भगदड़ मचने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं लेकिन हर बार प्राशासन अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए नज़र आता है। सुरक्षा के नाम पर तमाम दावे प्रशासन की तरफ से ठोके तो जाते हैं लेकिन जब हालात बेकाबू होते हैं तो उनके पास बगले झांकने के सिवाए कोई काम नहीं होता है। हमेशा की तरह ही इस भगदड़ की जांच के आदेश दे दिये गए हैं लेकिन देखने वाली बात ये रहेगी है कि क्या इस जांच से कुछ सबक लिया जाता है। वहीं मरने वालों को मुआवजे के तौर पर राज्य सरकार और प्रधानमंत्री की तरफ से पांच लाख रूपए देने की बात कही गई है, लेकिन क्या इन पैसों को देखकर गमगीन परिवारों को सब्र आ सकता है।

जैसा कि अमूमन देखा गया है कि महिलाएं इस तरह के धार्मिक आयोजन में बड़ी तादाद में एकत्र होती हैं, तो यहां पर भी वहीं नज़ारा देखने को मिला क्योंकि मारने वालों सबसे अधिक महिलाएं थीं। जांच में जुटे अधिकारियों ने इस बाबत बताया भी कि इस हादसे में कम से कम 50 लोग घायल भी हुए हैं। इधर इस दर्दनाक घटना के बाद गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पंड्या ने नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए सभी तरह के कार्यक्रमों को रद्द करने के साथ ही शांति पाठ आयोजित करने का फैसला किया। उल्लेखनिए है कि गायत्री परिवार ने अपने संस्थापक श्रीराम शर्मा की जन्मशताब्दी के अवसर पर छह नवंबर से सोलह नवंबर के बीच यज्ञ सहित कई कार्यक्रम आयोजित किये है और इसमें भाग लेने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में भक्त यहां जमा हुए थे। प्रत्यक्षदर्शी इस घटना के लिए वीआईपी लोगों को भी ज़िम्मेदार मान रहे हैं क्योंकि प्रशासन सबसे ज्यादा उनकी खातिरदारी में लगा हुआ था। घटना स्थल मौजूद लोगों की मानें तो भीड़ इतनी अधिक हो गई थी कि पुलिसकर्मियों ने लोगों पर काबू पाने के लिए लाठी चला दी जिससे बचने के लिए लोग एक दूसरे पर गिरने लगे और इसी कारण भगदड़ मच गई। लेकिन शांतिकुंज के प्रमुख प्रभारी डॉ राम महेश मिश्रा ने दबी हुई जुबान में ही सही लेकिन ये माना कि उस दिन ज़्यादा वीआईपी मूवमेंट रहा, क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूल भी यहां आए हुए थे। इस दुखद घटना  से से खासे गमगीन नज़र आ रहे प्रमुख प्रभारी ने इस बच अपने साथ ही पुलिस का भी बचाव करते हुए साफ कर दिया कि इसके लिये किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। प्रभारी जी शायद ये बताने की कोशिश कर रहे होंगे कि जो वीआईपी आयोजन में आए थे तो उनको अधिक वरियता दिया जाना कहीं से भी गलत नहीं था। 


यूं भी आजतकल धार्मिक स्थालों पर अलग से वीआईपी लेन बनाने का चलन सा हो गया है। इस मसले पर बहस हो सकती है लेकिन सवाल ये है कि क्या भगवान के घर भी अमीर-गरीब का अलगाव किया जा सकता है। ख़ैर ऐसा हमेशा होता है कि इस तरह के धार्मिक कार्यक्रमों में भीड़ अनुमान से भी कहीं अधिक हो जाती है इसलिए प्रशासन को व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुख्ता इंतजाम करने चाहिए ताकि ऐसे अवसरों स्थिति को नियंत्रित रखा जा सके। वहीं जरूरत इस बात की भी है कि इस तरह के आयोजनों के लिए तैयारी में किसी तरह की चूक न बरती जाए। वहीं राज्यों सरकारों को भी दुख जताने से ज्यादा ध्यान इस बात पर देना चाहिए कि इस तरह के हादसों पर किस तरह से लगाम लगाई जाए ताकि खुशी के इन मौकों को मातम में बदलने से बचाया जा सके।

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