Tuesday 15 November 2011

यूपी के होंगे चार हिस्से ?



जैसे-जैसे देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां तेज़ हो रही हैं वैसे-वैसे राजनीतिक दल किसी भी तरह से जनता के विश्वास पर खरे उतरने की जुगत में भिड़ गए हैं। इसी कड़ी में प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने भी घोषणा की है वो 21 नबंवर से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में सूबे को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव रखेंगी। कैबिनेट द्वारा पास किये गए इस प्रस्ताव को मीडिया के सामने रखते हुए मायावती ने कहा कि वो इस प्रस्ताव को विधान सभा में पास कराकर केंद्र सरकार पर राज्य का बंटबारा किये जाने को लेकर दबाव बनाएंगी। मायावती के मुताबिक इस चारों राज्यों के नाम पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश रखे होंगे। मायावती ने संवाददाओं के सवालों के जबाब देते हुए कहा कि यूपी इस समय देश में सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है और इसी कारण केंद्र सरकार इस पर अपना पूरा ध्यान नहीं देती है, नतीजतन राज्य का उतना विकास नहीं हो पा रहा है जितना कि होना चाहिए। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मायावती कहतीं हैं कि उनकी पार्टी हमेशा से ही छोटे राज्यों की पक्षधर रही है क्योंकि ये राज्यों के विकास के लिए ज़रूरी है। साथ ही केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि वो मुख्यमंत्री होने के नाते कई दफा राज्य को विशेष पैकेज दिये जाने की बात रख चुकीं हैं लेकिन अभी तक इस तरफ कोई प्रगति नहीं हुई है।

अब जिस तरह से मायावती छोटे राज्यों पर अपना दांव खेल रहीं हैं उससे साफ है कि वो पूरे मामले में केंद्र सरकार को फंसाना चाह रहीं हैं क्योंकि नए राज्यों को बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के ही पास होता है। वैसे ऐसा भी नहीं कि मायावती ने पहली बार यूपी को बांटे जाने का मुद्दा उठाया हो क्योंकि उनके अनुसार उन्होंने इससे पहले भी केन्द्र सरकारों को पत्र लिखे थे, लेकिन न तो केंद्र में उस समय की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कोई जबाव आया और न ही कांग्रेस ने इस दिशा में किसी तरह की कार्यवाई है। फिलहाल ये तो माना जा सकता है कि मायावती काफी अर्से से इस बात की दुहाई दे रहीं थीं कि यूपी को बांट देना चाहिए लेकिन इस बार जिस तरह से उन्होंने चुनावों से ठीक पहले इस मुद्दे को छेड़ा है उससे साफ हो जाता है कि वो सियासी फायदा उठाने के मकसद से ही इस चाल को चल रहीं हैं। यूं भी अभी से इस बात के स्वर तेज़ हो गए हैं कि मायावती अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए ही प्रदेश को बांटने की बात कर रही हैं। सूबे के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने भी खुले तौर पर कह दिया है कि वो हमेशा से यूपी को बांटने के खिलाफ रही है और आगे भी उसकी विचारधारा में कोई फर्क नहीं आएगा। भले ही सपा की इस भाषा में सियासत की बू आ रही हो लेकिन यहां अहम सवाल ये खड़ा होता है कि क्या यूपी को बांटने से इसका विकास हो सकेगा। इससे पहले उत्तरांचल, झारखंड और छत्तीसगढ़ को भी विकास के नाम पर अलग राज्य बनाया गया था, लेकिन इन राज्यों ने कितनी तरक्की की है ये बात किसी से छुपी हुई नहीं है। झारखंड में तो लगभग हर साल मुख्यमंत्रियों के बदले जाने ने नया रिकॉर्ड सा कायम कर दिया है। इसी तरह से उत्तरांचल और छत्तीसगढ़ की हालात भी कोई बहुत ज्यादा बेहतर नहीं कही जा सकती है। बहरहाल देश भर में तकरीबन दर्जनभर जगह नए राज्यों के लिए आंदोलन चलाए जा रहे हैं जिसमें तेंलगाना का मामला सबसे अधिक चर्चा में है। अब अगर एक ही राज्य से चार राज्यों को बनाने की बात निकलेगी तो ऐसा माना जा सकता है कि अलग राज्यों को बनाने की मांग करने वाले क्षेत्रों में और अधिक उग्र आंदोलन देखने को मिलें।



Saturday 12 November 2011

आखिर कब जागेगा प्रशासन



पिछले दिनों उत्तराखंड के हरिद्वार गायत्री परिवार के यज्ञ कार्यक्रम के दौरान मची भगदड़ में 20 लोगों के मरने की ख़बर सामने आई। ख़बर सुनकर बहुत दुख हुआ लेकिन इससे ज्यादा मायूसी प्रशासन की घओर लापरवाही के कारण हुई। अब यहां सबसे बड़ा मुद्दा ये उठता है कि प्रशासन आखिर कब इस तरह के आयोजनों को कराने की कला सीखेगा। हर महीने कहीं न कहीं से इस तरह की ख़बरें आ जातीं कि फलां मंदिद में भगदड़ से इतनी लोगों की मौत हुई। और तो और सेना की भर्ती के दौरान भी भगदड़ मचने की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं लेकिन हर बार प्राशासन अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए नज़र आता है। सुरक्षा के नाम पर तमाम दावे प्रशासन की तरफ से ठोके तो जाते हैं लेकिन जब हालात बेकाबू होते हैं तो उनके पास बगले झांकने के सिवाए कोई काम नहीं होता है। हमेशा की तरह ही इस भगदड़ की जांच के आदेश दे दिये गए हैं लेकिन देखने वाली बात ये रहेगी है कि क्या इस जांच से कुछ सबक लिया जाता है। वहीं मरने वालों को मुआवजे के तौर पर राज्य सरकार और प्रधानमंत्री की तरफ से पांच लाख रूपए देने की बात कही गई है, लेकिन क्या इन पैसों को देखकर गमगीन परिवारों को सब्र आ सकता है।

जैसा कि अमूमन देखा गया है कि महिलाएं इस तरह के धार्मिक आयोजन में बड़ी तादाद में एकत्र होती हैं, तो यहां पर भी वहीं नज़ारा देखने को मिला क्योंकि मारने वालों सबसे अधिक महिलाएं थीं। जांच में जुटे अधिकारियों ने इस बाबत बताया भी कि इस हादसे में कम से कम 50 लोग घायल भी हुए हैं। इधर इस दर्दनाक घटना के बाद गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पंड्या ने नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए सभी तरह के कार्यक्रमों को रद्द करने के साथ ही शांति पाठ आयोजित करने का फैसला किया। उल्लेखनिए है कि गायत्री परिवार ने अपने संस्थापक श्रीराम शर्मा की जन्मशताब्दी के अवसर पर छह नवंबर से सोलह नवंबर के बीच यज्ञ सहित कई कार्यक्रम आयोजित किये है और इसमें भाग लेने के लिए देश-विदेश से बड़ी संख्या में भक्त यहां जमा हुए थे। प्रत्यक्षदर्शी इस घटना के लिए वीआईपी लोगों को भी ज़िम्मेदार मान रहे हैं क्योंकि प्रशासन सबसे ज्यादा उनकी खातिरदारी में लगा हुआ था। घटना स्थल मौजूद लोगों की मानें तो भीड़ इतनी अधिक हो गई थी कि पुलिसकर्मियों ने लोगों पर काबू पाने के लिए लाठी चला दी जिससे बचने के लिए लोग एक दूसरे पर गिरने लगे और इसी कारण भगदड़ मच गई। लेकिन शांतिकुंज के प्रमुख प्रभारी डॉ राम महेश मिश्रा ने दबी हुई जुबान में ही सही लेकिन ये माना कि उस दिन ज़्यादा वीआईपी मूवमेंट रहा, क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूल भी यहां आए हुए थे। इस दुखद घटना  से से खासे गमगीन नज़र आ रहे प्रमुख प्रभारी ने इस बच अपने साथ ही पुलिस का भी बचाव करते हुए साफ कर दिया कि इसके लिये किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। प्रभारी जी शायद ये बताने की कोशिश कर रहे होंगे कि जो वीआईपी आयोजन में आए थे तो उनको अधिक वरियता दिया जाना कहीं से भी गलत नहीं था। 


यूं भी आजतकल धार्मिक स्थालों पर अलग से वीआईपी लेन बनाने का चलन सा हो गया है। इस मसले पर बहस हो सकती है लेकिन सवाल ये है कि क्या भगवान के घर भी अमीर-गरीब का अलगाव किया जा सकता है। ख़ैर ऐसा हमेशा होता है कि इस तरह के धार्मिक कार्यक्रमों में भीड़ अनुमान से भी कहीं अधिक हो जाती है इसलिए प्रशासन को व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुख्ता इंतजाम करने चाहिए ताकि ऐसे अवसरों स्थिति को नियंत्रित रखा जा सके। वहीं जरूरत इस बात की भी है कि इस तरह के आयोजनों के लिए तैयारी में किसी तरह की चूक न बरती जाए। वहीं राज्यों सरकारों को भी दुख जताने से ज्यादा ध्यान इस बात पर देना चाहिए कि इस तरह के हादसों पर किस तरह से लगाम लगाई जाए ताकि खुशी के इन मौकों को मातम में बदलने से बचाया जा सके।

यात्रा बनी समस्या


यूं तो देश की राजधानी दिल्ली को यात्रा करने के मामले में सबसे बेहतर माना जाता है। इसकी वजह ये भी हो सकती है कि आज दिल्ली के पास मैट्रों से लेकर बढ़िया स्तर की लो प्लोर बसों का जखीरा है जो यात्रा का न सिर्फ आरामदायक बनाती है बल्कि अपनी बेहतर सर्विस के लिए भी इसको सराहा जाता है। लेकिन आजकल जिस तरह का हाल दिल्ली से नोएडा जाने वाली बसों का देखने को मिल रहा है उसने यात्रियों के सामने कई तरह की मुश्किलें पैदा कर दीं हैं।
सबसे पहली बात तो दिल्ली और नोएडा के बीच डीटीसी की बसों की तादाद बहुत ज्यादा कम है और लोगों को बस के इंतज़ार में घंटो तक खड़े रहना पड़ता है। महरौली से नोएडा जाने वाले रूट की हालत तो इसतनी खराब हो गई है कि ऑफिस के लिए जाने वाले लोगों को रोज़ लेट होना आम बात हो गई है। इसके अलावा नोएडा जाने वाली अधिकतक 34 नंबर की बसों को सिर्फ सरिता विहार तक ही चलाया जा रहा है। बसों के कम होने की वजह से भीड़ अधिक हगो जाती है जिसके कारण बसों में लड़ाई-झगड़ा और गाली-गलौंच होना आम बात हो गई है। राज्य सरकार का इस रूट पर ज़रा भी ध्यान नहीं है तभी इस रूट पर सुधार नहीं हो पा रहा है। इसके अलावा इस रूट पर कई जगह जाम रहता जैसे संगम विहार, आली गांव और कालिंदी कुज पर लगने वाले रोज़ के जाम से लोग आजिज आ चुके हैं। छोटा से पुल होने कारण यहां पर रोज़ जाम लग जाता है। कभी-कभी तो ये जाम इतना ज्यादा होता है कि वाहन घंटों तक हिल तक नहीं पाते हैं।

इन सबके बावजूद बढ़ते किराए ने भी लोगों का हालात पतली कर रखी है। कुछ समय पहले की बात है जब लोग 10 रूपए के टिकट पर नोएडा में पहुंच जाते थे लेकिन अब तो हर सेक्टर की टिकट अलग कर दी गई है जिससे लोगों का काफी पैसा सिर्फ किराए में ही खर्च हो जाता है। इसके अलावा महीने के पास को भी मंहगा करके सरकार ने लोगों के साथ नाइंसाफी की है। एक आम यात्री होने के नाते मुझे इस तरह की परेशानियों से रोज़ दो चार होना पड़ता है। इसलिए मेरा सरकार से निवेदन है कि वो इस दिशा में काम करके स्थिति को संभाले नहीं तो ये समस्या दिन ब दिन बढ़ती है जाएगी।

Monday 17 October 2011

हिसार सीट से बिश्नोई जीते


हरियाणा के हिसार में हुए लोकसभा के उपचुनाव का बहुप्रतिक्षित रिज़ल्ट घोषित हो चुका है और इसमें कुलदीप बिश्नोई ने बाजी मारते हुए जीत दर्ज की है। बीजेपी समर्थित हरियाणा जनहित कांग्रेस के उम्मीदवार कुलदीप ने नेशनल लोकदल पार्टी के अजय चौटाला को हराया। जैसा की चर्चा थी कि कांग्रेस इस बार उलटफेर कर सकती है लेकिन ये सारी की सारी संभावनाएं धरी की धरी रह गईं क्योंकि उनके प्रत्याशी जयप्रकाश को इस बार भी तीसरे नंबर से ही संतोष करना पड़ा। वैसे सियासी जानकारों की मानें तो इस जीत मैं कहीं न कहीं अन्ना फैक्टर ने भी काम किया है क्योंकि कांग्रेस को वोट न देने की उनकी मुहीम से सीधा फायदा बीजेपी को ही मिला है। अलबत्ता बिश्नोई जीत के बाद इस बात को नकार रहे हैं कि उनकी जीत में किसी तरह भी अन्ना ने साथ दिया है। फिलहाल ये बात कांग्रेस के लिए फिक्र की इसलिए भी हो सकती है कि इसके बाद अन्ना यूपी चुनाव में भी कांग्रेस के विरूद्ध प्रचार करने का फैसला कर सकते हैं।
      
इस बीच बिश्नोई की जीत की ख़बर सुनते ही उनके घर के बाहर समर्थकों की बड़ी भीड़ जुट गई और उन्होंने कुलदीप की जीत पर जमकर जश्न मनाया। याद रहे कि कुलदीप बिश्नोई हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के बेटे हैं और उनकी मौत के बाद इस सीट पर 13 अक्टूबर को चुनाव हुआ था। वहीं प्रचार के दौरान जिस तरह से अन्ना ने खुले तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी का विरोध किया था, तो उसी समय से ऐसा लग रहा था कि चुनाव में जय प्रकाश का जीतना मुश्किल हो सकता है। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान जयप्रकाश ने अन्ना को दरकिनार करते हुए कहा था कि हजारे की अपील का इस चुनाव पर को असर नहीं हो सकता क्योंकि चुनाव मुद्दों पर लड़े जाते हैं। अब जिस तरह से बाजी कांग्रेस के हाथ से निकली है उसे देखते हुए ये संभावना यकीन में बदल गई है कि अन्ना की अपील का लोगों पर खासा असर पड़ा है। वैसे यहां ये बात भी उल्लेखनीए है कि 2009 में हुए चुनावों में भी कांग्रेस के जय प्रकाश तीसरे स्थान पर ही रहे थे। इधर कांग्रेस की तरफ से हार को स्वीकार करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि वो इस हार की समीक्षा करेंगे। बकौल मुखर्जी हार हमेशा ही दुखद होती है इसलिए पार्टी इसके कारणों का पता लगाने का प्रयास करेगी।

बहरहाल कांग्रेस के लिए ये परिणाम हताशा वाले हो सकते हैं क्योंकि अब उनके विपक्ष में अन्ना पूरी तरह से उतर चुके हैं। शायद इसी को देखते हुए पार्टी के महासचिव राहुल गांधी ने अन्ना से मिलने का फैसला किया है। विपक्षी पार्टी इसे कांग्रेस की हताशा बता रही हैं लेकिन कांग्रेस की तरफ से इस मुलाकात को महज बातचीत बढ़ाए जाने के तरीके के तौर पर पेश किया जा रहा है। अब मामला चाहें जो भी हो लेकिन जिस तरह से राहुल यूपी के चुनाव में एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं उसे देखते हुए ऐसा भी माना जा रहा है कि राहुल गांधी अन्ना से ये अपील कर सकते हैं कि वो यूपी चुनाव में उनके खिलाफ अपना अभियान न चलाएं। फिलहाल अब देखने वाली बात ये होगी कि आने वाले दिनों में क्या कांग्रेस अन्ना के जनलोकपाल बिल पर अपनी हामी भरेगी, क्योंकि अन्ना का एकमात्र मुद्दा इस बिल को किसी भी तरह से पास कराए जाने को लेकर है।  

Saturday 15 October 2011

गज़ल किंग जगजीत सिंह



गज़ल गायकी को एक अलग अंदाज़ देने वाले जगजीत सिंह का सुरीला सफर 10 अक्टूबर को ठहर गया। ब्रेन हेमरेज के बाद मुंबई के लीलावती अस्पताल में करीबन दो सप्ताह तक मौत से लड़ाई लड़ने वाले जगजीत सिंह आखिरकार हमें अलविदा कहकर उस देश को चले गए जहां न कोई चिठ्टी और न ही कोई संदेश पहुंच सकता है। महज 70 साल की उम्र में ही हमसे नाता तोड़कर जाने वाले जगजीत सिंह का जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में 8 फ़रवरी 1941 को हुआ था। परिवार के लोगों ने शुरू में जगजीत सिंह का नाम जगमोहन रखा था, लेकिन एक ज्योतिषी की सलाह पर इसे बदल कर जगजीत कर दिया गया था। इसके बाद जगजीत ने ग़जलों में रूचि लेना शुरू किया और संगीत की शिक्षा हासिल करने के बाद वो साठ के दशक में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मायनगरी में आ गए। बस यहीं से जो गायकी का सफर शूरू हुआ तो उसने कभी भी रूकने का नाम नहीं लिया बल्कि रोज़ ब रोज़ उनकी प्रसिद्धि देश के साथ–साथ विदेशों में भी फैलने लगी। गज़ल के क्षेत्र में अपनी खास जगह बनाने के बाद जगजीत ने अपनी दोस्त चित्रा से शादी कर ली, शादी के बाद उनके घर में एक बेटा का जन्म भी हुआ लेकिन दर्द के इस पुजारी को यहां भी जिंदगी ने एक और बड़ा सदमा देते हुए उनसे उनका 19 साल का बेटा छीन लिया। ग़मों के इस सैलाब से उबरते हुए जगजीत ने वापस अपनी आवाज़ का जादू बिखरने शूरू तो किया लेकिन उनकी पत्नी को अपने बेटे के खोने का इतना बड़ा सदमा लगा कि उन्होंने गज़लें गाना बिल्कुल बंद कर दिया। बेटे की मौत के बाद जगजीत सिंह ने काफी हद तक उन्हें संभाला था लेकिन अब उनके जाने के बाद चित्रा के लिए खुद को संभाल पाना आसान नहीं होगा।

इधर जैसे ही जगजीत सिंह की मौत की ख़बर वॉलीबुड के लोगों को लगी तो तमाम लोगों ने न सिर्फ इसे बड़ी क्षति बताया बल्कि यहां तक कहा कि गज़ल गायकी का एक पूरे का पूरा अध्याय समाप्त हो गया है। मशहूर गायिका लता मंगेशकर ने जगजीत की मौत पर गहरा अफसोस करते हुए कहा कि गज़ल गायकी में उनके स्टाइल, उनका गाने का तरीका, अच्छी शायरी को सामने लाने की कला अब नहीं दिखाई नहीं देगी क्योंकि किसी में भी उनके जैसे बात नहीं है। इसी तरह से बीते ज़माने के एक्टर फारूक शेख मानते हैं कि गज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था। अभिनेता रज़ा मुराद भी मानते हैं कि जगजीत सिंह ने गज़लों को पूरी दुनिया में नाम दिलाया। बकौल मुराद पहले वो मानते थे कि गज़लें सिर्फ बुढ़े लोगों के लिए होती हैं लेकिन उन्होंने ऐसी गज़लें पेश की जिन्होंने नौजवानों के दिल में भी खासी जगह बनाई। सरहद पार यानि पाकिस्तान की मशहूर सूफ़ी गायिका आबिदा परवीन ने भी खुद को जगजीत सिंह की बड़ी फैन बताते हुए उन्हें जग के जीत का नाम दिया। वाकई संगीत की परख रखने वालों के साथ ही आम आदमी के ज़ेहन में भी जगजीत की गज़लें आसानी से अपनी जगह बना लेती थीं। आज के दौर में जबकि संगीत में कई तरह की विधाएं देखने को मिल रहीं हैं जैसे पॉप संगीत और रीमिक्स संगीत लेकिन जगजीत की गज़लों की लोकप्रियता इन सबके बावजूद न सिर्फ बनी हुई है बल्कि दिनों दिन इनको सुनने वालों की तादाद भी बढ़ती जा रही है।
    
बहरहाल होठों से छू लो तुम..., ये दौलत भी ले लो..., होशवालों को खबर क्या..., हजारों ख्वाहिशें ऐसी..., हाथ छूटे भी तो..., वो कागज़ की कश्ती, मैं नशे में हूं जैसी बेशुमार सुरीली गजलों को पेश करने वाले जगजीत सिंह के चले जाने से संगीत को वास्तव में बहुत बड़ी क्षति हुई है। ख़ैर भले ही जगजीत सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे हों लेकिन उनकी यादगार गज़लें हमेशा हमारे साथ बनी रहेंगी। महान गज़ल गायक को हमारी तरफ से आखिरी सलाम।

Wednesday 12 October 2011

फिक्सिंग की फांस


क्रिकेट जगत में एक बार फिर फिक्सिंग के खुलासे ने सनसनी मचा दी है। मैच फिक्स करने का मामला दरअसल उस समय उठा जब लंदन की एक अदालत में पिछले साल एक स्टिंग के जरिए पकड़े गए बुकी मज़हर मजीद ने स्वीकार किया कि मैच फिक्स करने के इस बाज़ार में वो सालों से इस तरह की गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। अदालत के सामने कई अहम खुलासे करते हुए मजीद ने कहा कि खुद को पाक साफ बताने वाले ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी दुनिया भर में सबसे अधिक मैच फिक्स करते हैं। पाकिस्तान के तो कई दिग्गज खिलाड़ियों के नाम गिनाते  हुए मज़हर ने कहा कि वसीम, वक़ार, एजाज अहमद और मोइन खान जैसे खिलाड़ी भी मैच हारने के लिए पैसे खा चुके हैं। वहीं मामला सिर्फ पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया तक ही सीमित नहीं है बल्कि भारत के दामन पर भी इसके छींटे पड़ते हुए नज़र आ रहे हैं। बुकी मज़हर ने खुलासा किया है कि भारतीय खिलाड़ी युवराज सिंह और हरभजन सिंह के उनसे संबंध हैं। लेकिन भारतीय टीम के सबसे अनुभवी स्पिनर हरभजन ने साफ कर दिया है कि वो किसी भी मजीद नाम के शख्स को नहीं जानते हैं। साथ ही भज्जी ने ये भी कहा कि मजीद द्वारा उनका नाम नाहक ही इस मामले में घसीटे जाने पर वो इसके खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई करने की बात पर भी विचार कर रहे हैं। इसी तरह से युवराज सिंह ने भी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर लिखा है कि क्रिकेट एजेंट मज़हर मजीद के साथ उनकी किसी तरह की जान-पहचान नहीं है।

इधर क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने भी अपने खिलाड़ियों का पूरी तरह से बचाव करते हुए कहा है कि ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को दुनिया का सबसे बड़ा मैच फ़िक्सर बताने वाले इस बयान में ज़रा भी सच्चाई नहीं है। उल्लेखनीए है कि मजीद ने ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों पर मैच के कुछ हिस्से फ़िक्स करने का आरोप लगाया था। फिक्सिंग की जुबान में इसे ब्रैकेट्स कहते हैं जिसके तहत मैच के अलग-अलग हिस्सों को लेकर फ़िक्सिंग होती है जैसे शुरूआती ओवरों में कितने विकेट गिरेंगे और कितने रन बनेंगे। मजीद की मानें तो ऑस्ट्रेलियाई हर मैच में कम से कम 10 ब्रैकेट्स फिक्स करते हैं। वैसे क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेम्स सदरलैंड ने इस बाबत कहा है कि वह आईसीसी अधिकारियों से इस बारे में बात करेंगे और अगर कोई भी खिलाड़ी मैच-फ़िक्सिंग में शामिल पाया गया तो उस पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। याद रहे कि न्यूज़ ऑफ़ वर्ल्ड के  पत्रकार मज़हर महमूद पिछले साल एक स्टिंग करके इस बात का खुलासा किया था कि इंग्लैंड के खिलाफ खेले जा रहे टेस्ट मैच को टीम के तीन खिलाड़ियों ने फिक्स किया था। वीडियो में पाकिस्तान के खिलाड़ियों ने बातचीत के मुताबिक ही तय समय पर तीन नो बॉल फेंकी थी जिसमें मोहम्मद आसिफ, मो आमिर के साथ ही सलमान बट्ट भी फंस गए थे। इसके बाद आईसीसी ने मामले की जांच करने के बाद सलमान बट्ट, आसिफ और मो आसिफ पर उम्रभर क्रिकेट नहीं खेलने की पाबंदी लगा दी थी।

अदालत के सामने अपनी बात रखते को हुए मजीद ने स्वीकार किया कि वो मैच फ़िक्सिंग के जरिए काफी पैसा कमा चुका है। ढाई साल से इस धंधे को करने वाला मजीद ट्वेन्टी-20 मैच को फ़िक्स करने के लिए चार लाख पाउंड और वनडे मैच के नतीजे बदलने के लिए चार लाख 50 हज़ार डॉलर लगाता था। अब जब इतने बड़े स्तर के मैचों को मज़ीद ने फिक्स होने का दावा किय़ा है तो लाजिमी है कि दुनिया भर में इसको लेकर हलचल तो होगी ही। वैसे ऐसा नहीं है कि फिक्सिंग के छींटे भारत और ऑस्टेलिया पर भी पहली बार लग रहे हों क्योंकि कंगारूओं की तरफ से इससे पहले जहां मार्क वॉ और शेन वार्न जैसे खिलाड़ियों के नाम उछले चुके हैं वहीं भारत में भी पूर्व कप्तान मो अज़हरूद्दीन और अजय जडेजा को तो इसकी कीमत अपना क्रिकेट करियर खत्म करके चुकानी पड़ी है। फिलहाल भारत की तरफ अभी इस मामले को नकारा जा रहा है लेकिन जिस तरह से अदालत में मजीद ने भारतीय खिलाड़ियों का नाम लिया है तो इसके बाद बीसीसीआई की ये ज़िम्मेदारी बन जाती है कि वो मामले की जांच कराकर दूध का दूध और पानी का पानी कराए ताकि किसी भी क्रिकेटप्रेमी के जेहन में खिलाड़ियों को लेकर किसी तरह का शक पैदा न हो सके।