Friday 23 September 2011

नहीं रहे पटौदी



भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम के सफल कप्तानों में गिने जाने वाले और टाइगर के नाम से मशहूर पूर्व क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी का कल शाम दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया। 70 साल के पटौदी को फेफड़ों में संक्रमण हो गया था और इसी के चलते वो कुछ समय से अस्पताल में अपना इलाज करा रहे थे। पटौदी की मौत की ख़बर जैसे ही पता लगी तो इसके बाद उनके घर पर तमाम बड़ी हस्तियों का तांता लग गया। पूर्व क्रिकेटर कपिल देव, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह, बीजेपी नेता अरूण जेठली  और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल समेत तमाम लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उनके आवास पर पहुंचे। पटौदी का अंतिम संस्कार हरियाणा में उनके पैतृक गांव पटौदी में आज दोपहर कर दिया गया। पटौदी के आखिरी सफर में उनकी पत्नी शर्मिला टैगोर बेटे सैफ अली खान के साथ ही दोनों बेटियों भी मौजूद रहीं। बड़ी तादाद में जमा हुए उनके प्रशंसकों के बीच उनके जनाजे को सुपूर्दे खाक कर दिया गया। महज 21 साल की उम्र में भारतीय टीम की बागडोर संभालने वाले पटौदी ने सही मायने में टीम के अंदर जीतने का जज्बा पैदा किया था।

पटौदी का जन्म 5 जनवरी 1941 को भोपाल में हुआ था। वहीं भारतीय टीम के लिए उन्होंने 1961 में पहला टेस्ट खेलते हुए महज एक साल के अंदर ही टीम की कप्तानी भी हासिल कर ली थी। कुल मिलाकर 40 टेस्ट मैचों में कप्तानी करने वाले पटौदी ने 9 टेस्ट मैचों में भारत को जीत भी दिलाई। विदेशी पिचों पर अपने लचर प्रदर्शन के लिए पहचानी जाने वाली भारतीय टीम को इस गर्त से बाहर निकालते हुए 1968 में पहली बार न्यूज़ीलैंड को उसी की धरती पर 3-1 से हराकर न सिर्फ भारत को सिरीज़ जितवाई, बल्कि दुनिया को ये भी बता दिया दिया था कि आने वाला दौर भारतीयों का है। तूफानी बल्लेबाज़ी करने वाले पटौदी ने कुल 46 टेस्ट खेले जिनमें 6 शतक और 16 अर्धशतक लगाने के साथ ही लगभग 35 की औसत से 2793 रन बनाए थे। दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ खेली गई 203 रनों की नाबाद पारी उनके टेस्ट करियर का उच्चतम स्कोर भी साबित हुआ। लेकिन अगर उनकी सर्वश्रेष्ठ पारी की बात की जाए तो उन्होंने वो ऑस्ट्रेलिया में खेली थी, जब 25 रनों पर पांच विकेट गिर जाने के बाद उन्होंने अपनी चोट की परवाह न करते हुए शानदार 75 रनों की पारी खेली थी। वैसे पटौदी सिर्फ एक अच्छे बल्लेबाज़ ही नहीं थे बल्कि इसके साथ-साथ वो एक बेहतरीन फ़ील्डर भी थे जो हमेशा कवर पर खड़े होते थे और बिजली की फूर्ती दिखाते हुए गेंदे पर झपटते थे। कई क्रिकेट जानकार मानते हैं कि शायद इस तेज़ी की वजह से ही उनका नाम टाइगर पड़ा होगा। जवानी में अपनी एक आंख खोने के बावजूद जिस तरह से पटौदी ने क्रिकेट खेली उसे देखकर लगता नहीं है कि उनको अपनी एक आंख की कमी कभी खली होगी। शायद उन्हें एक आंख न होने के दर्द एहसास भी था तभी तो उन्होंने अपने मरने के बाद अपनी आंख को दान करने का महान फैसला किया, जिसने उनकी इज़्जत को अब और भी बढ़ा दिया है।

इधर पटौदी की मौत पर क्रिकेट जगत के साथ ही बॉलीवुड के लोगों ने भी अपने दुख का इजहार किया है। पूर्व टेस्ट कप्तान राहुल द्रविड़ ने पटौदी की मौत पर गहरा दुख जाहिर करते हुए कहा कि काश उन्हें इस महान खिलाड़ी के साथ कुछ वक्त और रहने का मौका मिल जाता। इसी तरह से मास्टर बल्लेबाज़ सचिन तेंडुलकर ने नवाब पटौदी की मौत पर दुख जताते हुए कहा है कि वो विश्व क्रिकेट के हीरो थे और मैं उनका बहुत सम्मान करता हूं। आईपीएल के पूर्व चैयरमैन ललित मोदी ने भी ट्वीट करते हुए लिखा है कि पटौदी ने आईपीएल के विकास में उनकी बहुत मदद की थी। बॉलीवुड स्टार अमिताभ बच्चन ने भी ट्वीटर पर बताया है कि पटौदी की मौत एक दुख भरी खबर है। इसी तरह से पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इमरान खान ने भी पटौदी की मौत पर दुख जाहिर करते हुए कहा है कि वो एक महान क्रिकेटर और प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। बनी बनाई टीम को लेकर चलना उतना बड़ा काम नहीं है जितना उसे नए सिरे से बनाना। पटौदी ने यही महान काम किया था और दुनिया को सिखाया था, कि असली संघर्ष करना किसे कहते हैं। हर समय क्रिकेट की मदद को तैयार रहने वाले इस महान खिलाड़ी को हमारा आखिरी सलाम।  

Wednesday 21 September 2011

गरीबों के साथ मज़ाक


लगता है कि सरकार को हर साल गरीबों की नई परिभाषा बताने की आदत पड़ चुकी है, तभी तो हर साल कोई न कोई नया आंकड़ा इस संबंध में जारी कर दिया जाता है। ताजा वाक्या ये है कि अब देश के उस तबके के लोगों को गरीब नहीं समझा जाएगा जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए 26 रूपए खर्च करते हैं। दरअसल ये अजीबो-गरीब आंकड़ा योजना आयोग की तरफ से जारी किया गया है जिसमें बताया गया है कि यदि शहर में रहने वाला व्यक्ति 32 रूपए और देहात में रहने वाला आदमी रोज़ाना 26 रूपए खर्च करता है तो उसे किसी भी कीमत पर गरीब नहीं माना जा सकता है। उल्लेखनिए है कि सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका पर कई बार योजना आयोग से इस सिलसिले में जबाव मांग चुका था, लेकिन कई बार की टालमटोली के बाद आखिरकार सरकार की तरफ से इस आंकड़े को अदालत के सामने पेश कर दिया गया है। 

अगर सीधे शब्दों में इस मामले को समझाने का प्रयास किया जाए तो आयोग ने ये बताने की कोशिश की है कि शहरों में 965 रुपये और गांवों में 781 रुपये प्रति महीना खर्च करने वाला शख्स गरीब रेखा के दायरे में नहीं रखा जा सकता है। शायद इस अजीब तरह के आंकड़े को पेश करके योजना आयोग ये बताने की फिराक में लगा हुआ है, कि इस तरह के लोग बीपीएल कार्ड के दायरे में आने के हक़दार नहीं है। बताते चलें कि इस रिपोर्ट को योजना आयोग ने कोर्ट में बतौर हलफनामें के पेश किया है। ऐसा नहीं है कि गरीबों की चिंता करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इससे अंजान हों क्योंकि रिपोर्ट पर उन्होंने खुद हस्‍ताक्षर किए हैं। अब इसे क्या कहा जाए कि जिस देश में महंगाई ने हर तरफ आग लगा रखी हो उस देश में किस आधार इतने कम पैसे खर्च करने वाले को गरीब नहीं समझा जा सकता है। जब पीएम खुद इस मुद्दे पर योजना आयोग से सहमत हैं, तो फिर किस सरकारी नुमाइंदे से गरीब जनता उम्मीद रख सकती है। वहीं अगर रिपोर्ट को विस्तार से पढ़ा जाए तो एक दिन में एक आदमी 5.50 रुपये दाल पर, 1.02 रुपये चावल-रोटी पर, 2.33 रुपये दूध, 1.55 रुपये तेल, 1.95 रुपये, सब्‍जी 44 पैसे फल पर 70 पैसे चीनी पर 78 पैसे नमक व मसालों पर 1.51 पैसे खर्च करने के साथ ही अगर ईंधन पर 3.75 पैसे खर्च करता है तो वह आराम से स्‍वस्‍थ्‍य जीवन जी सकता है। आयोग के मुताबिक कोई भी व्यक्ति अपनी हेल्थ पर 39.70 रुपये प्रति महीने खर्च करके स्वस्थ रह सकता है। वहीं एजुकेशन की गुत्थी को भी आयोग ने सुलझाते हुए बताया है कि 99 पैसे प्रतिदिन खर्च करते हैं तो आप शिक्षा के क्षेत्र में भी गरीब नहीं कहलाएंगे। और यदि आप कुल मिलाकर पूरे महीने में 100 रूपए अपने पर्सनल सामानों पर खर्च कर सकते हैं तो भी आपको गरीब कहलाने का कोई हक़ नहीं है।

इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि जिन आंकड़ों के सहारे सरकार ने देश के बड़े तबके को गरीब मानने से इंकार किया है वो खुद उसी के लिए शर्मनाक बात है। असल में आंकड़ेबाजी का खेल खेलने में तो सरकार पहले से आगे रही है लेकिन अपना हाथ आम आदमी के साथ का नारा देने वाली कांग्रेस पार्टी ने उन गरीबों के साथ मजाक किया है जो पहले ही रोज़ ब रोज़ अपनी थाली के घटने से परेशान हैं। महंगाई जिस तेज़ी के साथ गरीबों की नींद हराम कर रही है उससे ज्यादा परेशानी अब इस बात को लेकर बढ़ जाएगी कि अगर वो एक वक्त का खाना सही तरह से खा लेते हैं तो सरकार उन्हें गरीब नहीं मानेगी। अब ये गरीब के साथ मजाक नहीं तो और क्या है क्योंकि यहां सवाल ये खड़ा होता है कि क्या इस देश में किसी शख्स को भरपेट खाना खाने का भी हक़ नहीं है। सरकार की तरफ से गरीबों के साथ ये छलावा नहीं तो और क्या हैं क्योंकि इस दौर में जहां हर चीज़ के दाम आसमान छू रहे हैं तो ऐसे में इतने कम पैसों में गरीबी की दलदल में जिंदगी गुज़ार रहे लोग 26 रूपए खर्च करके कैसे इस श्रेणी से बाहर रखे जा सकते हैं फिलहाल ये बात जनता के साथ ही हमारे लिए भी समझना मुश्किल है।  

Monday 19 September 2011

बाढ़ का कहर


आतंक की आग में धधक रहे पाकिस्तान की मुश्किलों को अब कुदरत की मार और अधिक बढ़ा दिया है। रोज़ ब रोज़ अमूमन ये सुनने में आ ही जाता है कि पाकिस्तान के फलां शहर में धमाका हुआ, जिसमें दर्जनों मासूमों की मौत हो गई। इसी तरह से कभी मस्जिद में विस्फोट होता है तो कभी बाज़ारों को निशाना बनाया जाता है। और तो और मंत्रियों तक को यहां सरेआम गोलियों से भून दिया जाता है लेकिन अपराधी आराम से गायब हो जाते हैं। अब इसे पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत ही कहेंगे कि इस तरह के संगीन अपराध रोज़ होते हैं लेकिन कार्यवाई के नाम पर महज खानापूर्ती ही की जाती है। वैसे ये कोई नई बात नहीं है क्योंकि जब पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टों की दिनदहाड़े हत्या की जा सकती है तो किसी को भी निशाना बनाया जा सकता है।

चलिए इससे आग बढ़ते हैं क्योंकि भारत के इस पड़ोसी मुल्क का सिंध राज्य इस समय भयंकर बाढ़ की मार झेलने का मजबूर है। हालात का अंदाज़ा इससे ही लगाया जा सकता है कि अब तक बाढ़ से तकरीबन 65 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की मानें तो अब तक बारिश और बाढ़ के कहर में तकरीबन 300 लोग लोग मारे जा चुके हैं जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल हैं। वहीं इस संस्था की तरफ से ये भी बताया गया है कि लगातार बारिश होने और बाढ़ के खौफनाक मंजर के बीच कम से कम 23 लाख से भी अधिक लोग अलग-अलग तरह की बीमारियों का शिकार हो चुके हैं। बेकाबू होते हालात को देखते हुए पाकितस्नी सरकार ने अतंरराष्ट्रीय समुदाय से सहायता मांगी है। बीमारियों की बाबत सरकार की तरफ से बताया गया है कि छह लाख से ज़्यादा लोग नेत्र रोग, पाँच लाख से ज़्यादा त्वचा और साढ़े सात लाख हेज़ा जैसी ख़तरनाक बीमारियों की गिरफ्त में आ चुके हैं। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय राहत संस्था ऑक्सफ़ैम ने एक अनुमान लगाते हुए बताया है कि इस समय लगभग 50 लाख लोगों को खाने-पीने की चीजों के साथ ही पीने के लिए साफ़ पानी की भी ज़रुरत है।

यहां बता दें कि हाल ही में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी ने सिंध प्रदेश की हालात को देखते हुए अपनी अमरिका की यात्रा स्थागित कर दी थी। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस बाबत एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके बताया था कि सिंध में बाढ़ की स्थिति काफ़ी चिंताजनक हो जाने के कारण प्रधानमंत्री ने अपनी अमरिका की यात्रा स्थागित कर दी। बाढ़ से उत्पन्न हुए गंभीर हालातों को मद्देनज़र रखते हुए प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गिलानी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए अपील की है। वैसे इससे पहले राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पाकिस्तान की सहायता के लिए गुहार लगा चुके हैं। गौरतलब है कि पिछले साल सिंधु नदी में आई भयंकर बाढ़ ने लाखों लोगों को प्रभावित किया था। फिलहाल महासचिव बान की मून ने पाकिस्तान के साथ पूरी हमदर्दी दिखाते हुए उन्हें सहायता देने का आश्वासन दिया है। ख़ैर जिस तरह से समस्याएं पाकिस्तान का पीछा नहीं छोड़ रही हैं उससे इस देश का ऊबरने में खासा वक्त लग सकता है। पहले से ही जहां आतंकवाद का अजगर खुद पाकिस्तान को निगलने मे लगा हुआ हैं, ऐसे में बाढ़ की स्थिति बद से बत्तर होना यही दर्शाता है कि पाकिस्तान परमाणु मिसाइलों पर तो पैसा खर्च कर सकता है, लेकिन इस तरह की दुश्वारियों से निपटने के लिए वो कोई ठोस रणनीति नहीं बना सकता है।   

Friday 16 September 2011

क्या नहीं थमेगी मंहगाई


संसद में बैठकर जब प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी देश को ये बताने की कोशिश करते हैं कि वो मंहगाई के मुद्दे पर गंभीर हैं और आने वाले दिनों में इस पर काबू भी पा लिया जाएगा तो ज़ेहन में सिर्फ एक ही सवाल कौंधता है कि सफेदपोश नेता कब तक जनता के साथ छलावा करते रहेंगे। कभी दालों के दामों में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिलती है तो कभी एक ही साल के अंदर दूध की कीमतों को कई बार बिना वजह के ही बढ़ा दिया जाता है। हद तो तब हो जाती है जब लाखों टन अनाज बाहर पड़े-पड़े सड़ जाता है, लेकिन उसे जरूरतमंदों के पास तक सरकार ये कहकर नहीं पहुंचाती है कि वो उन पर पहले से ही बहुत मेहरबानी कर चुकी है। हो सकता है कि ये सही भी हो लेकिन जिन गरीबों के आंकड़े सरकार जमा करती है उनमें से अधिकतर अच्छे खासे घरों से ताल्लुक रखते हैं। यूं भी सरकार ने कई कमेटियों का गठन करके गरीबों की पहचान करने का प्रयास किया लेकिन हर रिपोर्ट के अलग ही आंकड़े सामने आए, जिससे ये जानने में भारी दिक्कत हुई कि आखिर देश में कुल गरीबों की तादाद आखिर कितनी है।

अलबत्ता इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि हम यहां सवाल बेलगाम मंहगाई पर कर रहे हैं जो अनाप-शनाप बढ़ती ही जा रही है। दरअसल कल रात से सरकारी कंपनियों ने पेट्रोल की कीमतों में 3.14 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी करके आम आदमी की मुश्किलों में इजाफा कर दिया है। कहानी सिर्फ यहीं समाप्त नहीं होती बल्कि सरकार की नज़र घर की रसोई पर भी आकर टिक गई है और वो आज कल रसोई गैस की कीमतों को बढ़ाने का फैसला करने की फिराक में है। अब इसे क्या कहा जाए कि एक तरफ तो बताया जाता है कि हर तरफ विकास की लहर दौड़ रही है लेकिन इस ग्रोथ में गरीब आदमी किस बेरहमी से कुचलकर मर रहा है किसी को कोई परवाह नहीं है। सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के नेतृत्व वाली एक कमेटी घरेलू गैस सिलेंडर पर सब्सिडी घटाने के साथ ही एक परिवार को सदस्यों के हिसाब से साल में चार से छह सिलेंडर देने पर विचार कर रही है। अब अगर ऐसा होता है तो किसी को भी अतिरिक्त सिलेंडर लेने के लिए तकरीबन 750 रूपए तक खर्च करने पड़ सकते हैं। यानि देश के 80 फीसद निर्धन लोगों के सामने इन फैसलों से भारी मुसीबत खड़ी होने वाली है। अगर किसी आदमी ने कर्ज करके एक मोटरसाइकिल निकलवा भी ली है तो अब शायद ही वो उसे चलाने की हिम्मत जुटा सके। उसी तरह से अब घर में कई बार बनने वाली चाय पर भी बैन लग जाए तो कोई ताज्जुब की बात नहीं होगी। वैसे इस बात पर कांग्रेस को घेरा जा सकता है कि कभी उसी ने ये नारा दिया था कि कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ लेकिन अब लगता है कि कांग्रेस का हाथ सिर्फ गरीब आदमी की जेब पर है कि उसे कैसे खाली किया जाए।
  
फिलहाल दिल्ली में जहां पेट्रोल 66.84 रुपये प्रति लीटर मिलेगा तो वहीं मुंबई में भी ये 71.28 रुपए प्रति लीटर और चेन्नई में 70.82  प्रति लीटर की दर से लोगों तक पहुंच सकेगा। याद रहे की इससे पहले तेल कंपनियों ने 15 मई को ही पेट्रोल के दामों में 5 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी की थी, लेकिन तीन महीने के अंतराल पर ही तीन रूपए की वृद्धि किसी के भी गले नहीं उतर रही है। फिलहाल कंपनियां खुद को ये कहकर बचाने के प्रयास में जुट गईं हैं कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर पहुंच चुकी है लिहाजा घाटा कम करने के लिए उन्हें कीमतें बढ़ाने को मजबूर होना पड़ा है। इसके अलावा एक कारण ये भी गिनाया जा रहा है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमज़ोर हुआ है जिसके कारण पेट्रोल की कीमतों में उछाल आया है। यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी हो जाता है कि जून 2009 में सरकार ने पेट्रोल को नियंत्रणमुक्त कर दिया था जिसके बाद कंपनियों को कीमतें निर्धारित करने का अधिकार मिल गया था और यही वजह है कि इसके बाद से पैट्रोल की कीमतों में तकरीबन 20 रूपए की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। फिलहाल बीजेपी ने इस बढ़ोत्तरी के खिलाफ पूरे देश में आंदोलन चालने की बात कही है लेकिन बढ़ी हुई कीमतें वापस ली जाएंगी, ये प्रश्न यूपीए के शासनकाल को देखते हुए अविश्वसनिए सा लगता है।

  

Thursday 15 September 2011

अलविदा राहुल द्रविड़...


भारत के लिए 343 वनडे मैच खेलने वाले मिस्टर भरोसेमंद राहुल द्रविड़ कल यानि शुक्रवार को अपना आखिरी वनडे इंग्लैंड के खिलाफ कार्डिफ मैदान पर खेलने के लिए उतरेंगे। कई खेल समीक्षक इस विदाई को कप्तान धोनी की दरियादिली के तौर पर देख रहे हैं, क्योंकि उन्होंने इससे पहले पूर्व कप्तान सौरव गांगुली और अनिल कुंबले की विदाई को यादगार बना दिया था। याद रहे कि अनिल कुंबले को उन्होंने जहां मैच समाप्त होने के बाद अपने कंधे पर बैठाकर मैदान के बाहर तक पहुंचाया था तो वहीं गांगुली को उन्होंने आखिरी मैच के अंतिम लम्हों में कप्तानी करने का मौका देकर सभी को चौंका दिया था। इसी तरह से इस बार भी सभी उम्मीद कर रहे हैं कि धोनी भारत की इस दीवार को सम्मानजनक विदाई देंगे। यूं भी द्रविड़ बीते दो सालों से वनडे की टीम से बाहर चल रहे थे लेकिन उनके शानदार फॉर्म और भारतीय टीम के गिरते प्रदर्शन की वजह से टीम से न सिर्फ एकदिवसीय टीम में जगह दी गई बल्कि टी-20 में उन्हें हाथ आजमाने का मौका दिया। इसके बाद 38 साल के द्रविड़ ने दोनों संस्करणों में खेलने की हामी तो भर दी लेकिन लगे हाथ सीरीज समाप्त होते ही दोनों प्रारूपों से संयास लिये जाने की भी घोषणा कर दी।


द्रविड़ का आखिरी मैच उनके करियर का कुल मिलाकर 344वां मैच होगा, जिनमें अभी तक उन्होंने लगभग 40 के बेहतरीन औसत से 10820 रन बनाए हैं और इनमें 12 शतक और 82 अर्धशतक भी जड़े हैं। इसके अलावा द्रविड़ ने हर काम को बेहद खामोशी के साथ किया और टीम की जरूरत के हिसाब से विकेटकीपिंग तक की। भद्रजनों का खेल कहे जाने वाले इस खेल में  द्रविड़ उन गिने चुने खिलाड़ियों मे से भी रहे हैं जिन्होंने मैदान पर शायद ही कोई बखेड़ा खड़ा किया हो। अमूमन स्लीप पर फील्डिंग करने वाले राहुल की फुर्ती का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टेस्ट मैचों में उनके हाथों में 200 से ज्यादा कैच समा चुके हैं। इसके अलावा विदेशी पिचों पर उनको बैटिंग करते हुए सबसे ज्यादा मज़ा आता है क्योंकि द्रविड़ के अधिकतर रन देश में न होकर बाहर की पिचों पर हैं। मौजूदा सीरीज की बात करें तो राहुल का प्रदर्शन उनके नाम के मुताबिक नहीं रहा है क्योंकि उन्होंने चार मैचों में महज 13.75 की औसत से 55 रन ही बनाए है। लेकिन टी-20 में जिस तरह से आक्रमक अंदाज़ अपनाते हुए उन्होंने शानदार 31 रन बनाए थे उससे सभी इस बात का अंदाजा लगा रहे थे की द्रविड़ वनडे मैचों में भी इस तरह का प्रदर्शन करेंगे लेकिन यहां उनका बल्ला ज्यादा नहीं चल सका है। फिलहाल उनके पास अभी भी एक मौका बचा हुआ, अब देखना ये होगा कि वन डाउन पर बैटिंग करने वाले द वॉल इसे कैसे भुनाते हैं।

यहां ये भी उल्लेख करना जरूरी हो जाता है कि इस तरह की बात करने वालों की कोई कमी नहीं है और जो इस बात को सबके सामने कहने से नहीं कतराते हैं कि द्रविड़ को वो मकाम नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। विकेटकीपिंग  से लेकर गेंदबाज़ी तक में हाथ आजमा चुके राहुल को मीडिया ने भी कभी वैसा कवरेज नहीं दिया जो उनके साथ खेलने वाले दूसरे खिलाड़ियों को दिया गया है। कहा तो यहां तक जाता है कि द्रविड़ का टीम से पत्ता साफ करवाने में धोनी की बड़ी भूमिका थी। बहरहाल इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि द्रविड़ ने खामोशी के साथ टीम के लिए जो योगदान दिया है वो हर किसी के बस की बात नहीं है क्योंकि उन्होंने बगैर शिकायत के अपने काम को अंजाम दिया है। अलबत्ता ये बात और है कि उन्हें बिना कारण बताए हुए कई बार टीम से निकाल भी दिया गया लेकिन उनकी महानता को दर्शाने के लिए ये आंकड़ा काफी है कि वनडे में सबसे अधिक रन बनाने के मामले में वो सातवें नंबर पर हैं और उनके बाद लारा और जयवर्धने का नंबर आता है। खैर अब टीम के लिए दूसरे द्रविड़ की तलाश करना खासा मुश्किल हो सकता है क्योंकि बीते दो साल में तीसरे नंबर पर खेलते हुए सुरेश रैना, विराट कोहली, रोहित शर्मा समेत कई नामों को देखा जा चुका है लेकिन अभी तक किसी को भी इस पोजीशन का पक्का हक़दार नहीं माना जा सकता है। 

एक और रेल हादसा


जिस तरह से एक के बाद एक रेल दुर्घटनाओं में यात्रियों को हादसों का शिकार होना पड़ रहा है उसने रेल विभाग के तमाम दावों की पोल खोल कर रख दी है। इससे पहले तकरीबन महीने डेढ़ महीने पहले यूपी के फतेहपुर में भी जबर्दस्त रेल हादसा हुआ था लेकिन लगता है कि रेलवे ने कोई सबक न लेने की कसम खा रखी है। ताजा मामला तमिलनाडु का है जहां पर कल रात लगभग 10 बजे राजधानी चेन्नई से 75 किलोमीटर दूर अराकोनम में दो ट्रेनें आपस में भिड़ गईं और इस दर्दनाक हादसे में 10 लोगों की मौत हो गई है और 100 से भी ज्यादा लोगों के घायल होने की ख़बर है। बताया जा रहा है कि ये हादसा उस वक्त हुआ जब चेन्नई-वेल्लोर इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट (ईएमयू) रेल गाड़ी ने पहले से खड़ी एक लोकल ट्रेन को पीछे से जोरदार टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जोरदार थी कि गाड़ी के पाँच डिब्बे पटरी से उतर गए।

हादसे के बाद मौके पर पहुंचे रेलवे पुलिस के महानिरीक्षक सुनील कुमार ने इस बाबत बताया कि लगभग सभी शवों की पहचान कर ली गई है। सुनील कुमार के मुताबिक सभी घायलों को पास के अस्पतालों में भर्ती करा दिया गया है और जो लोग गंभीर रूप से घायल हुए उन्हें ईलाज के लिए चेन्नई भेजा जा रहा है। वहीं जिस जगह पर दुर्घटना हुई है वहां पर भारी बारिश होने के कारण राहत और बचाव कार्यों में खासी दिक्कतें आ रही हैं। फिलहाल राहतकर्मी गैस कटर की मदद से ट्रेन के डिब्बों में फँसे लोगों को बाहर निकालने के प्रयास में जुटे हुए हैं। इसके साथ ही रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने मारे गए लोगों के परिजनों को पाँच-पाँच लाख रुपए का मुआवज़ा देने के साथ ही घायलों को भी एक-एक लाख रुपए बतौर मुआवजा देने की घोषणा की गई है। वहीं हादसे के बाद चेन्नई पहुंचे रेलमंत्री ने अस्पताल में जाकर घायलों से मुलाकात करने के बाद कहा कि ईएमयू रेलगाड़ी के चालक ने सिग्नल की अनदेखी करते हुए तेज़ स्पीड से ट्रेन दौड़ाई, जिसकी वजह से ये बड़ा हादसा हो गया। इधर रेल अधिकारी बता रहे हैं कि हादसे के बाद ईएमयू रेलगाड़ी का ड्राइवर अपने कक्ष से कूदकर फरार हो गया।

फिलहाल हर बार की तरह से इस बार भी रेलमंत्री ने दुख जताने के बाद पीडितों के परिजनों को मुआवजा देकर अपना पल्ला झाड़ लिया। अब सवाल उठता है कि लगभग हर महीने कोई न कोई बड़ा रेल हादसा हो जाता है लेकिन रेलमंत्री सिवाए दुख जाने के और कुछ नहीं कर पा रहे हैं। दिनेश त्रिवेदी से पहले उनकी ही पार्टी की ममता बैनर्जी के समय भी तमाम रेल हादसे हुए थे, लेकिन वो भी इन पर अंकुश लगाने में नाकाम रहीं थीं। अब लगता है कि नए रेलमंत्री भी उन्हीं के नक्शे कदम पर चल रहे हैं, क्योंकि रेल हादसों पर अब भी लगाम नहीं लगाई जा सकी है। ख़ैर दुनिया के सबसे बड़े रेलतंत्रों में शामिल की जाने वाली भारतीय रेल को हादसों की तरफ गंभीरता के साथ सोचना पड़ेगा नहीं तो इस तरह के हादसे मासूम लोगों की जान इसी तरह से लेते रहेंगे।

तेलंगाना राज्य बनेगा ?


आंध्र प्रदेश राज्य से अलग तेलंगाना राज्य बनाए जाने की मांग करने वाले समर्थकों ने आज यानि मंगलवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है। तेलंगाना राज्य की मांग कर रहे समर्थक इस हड़ताल को आख़िरी युद्ध तक कह रहे हैं, क्योंकि अब तक केंद्र सरकार उनकी मांगों को टालती आ रही है। बताते चलें कि तेलंगाना संयुक्त संघर्ष समिति और तेलंगाना राष्ट्र समिति ने सरकार को चेताते हुए ये ऐलान कर दिया है कि इस बेमियादी हड़ताल में तेलंगाना के सरकारी कर्मचारी, कोयले की खानों के मज़दूर, बिजली विभाग के कामगारों के साथ ही तमाम वर्गों के लोग शामिल होंगे, जो अलग राज्य बनाए जाने की पुरज़ोर वकालत करेंगे। वैसे इससे पहले भी आम लोग इस आंदोलन से जुड़े रहे हैं लेकिन इस बार जिस तरह से हड़ताल पर जाने की बात कही जा रही है उससे ये उम्मीद लगाई जा रही है कि सरकार को तेलंगाना समर्थकों की मांगों को गंभीरता से लेना पड़ सकता है।

वैसे इससे पहले कल संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक कोंडा राम और टीआरएस के अध्यक्ष चंद्रशेखर राव ने करीमनगर में आयोजित एक रैली में लोगों से आह्वान किया कि वो इस हड़ताल के समर्थन में आएं। साथ ही उन्होंने कहा कि वो तेलंगाना के सभी 10 ज़िलों में रास्ता रोको कार्यक्रम आयोजित करने के साथ ही रैली निकालें ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके। जैसा कि पहले ही से उस्मानिया यूनिवर्सिटी के छात्र अलग राज्य के लिए संघर्ष में हिस्सा लेते रहे हैं अब उसी की तर्ज पर सरकारी स्कूलों और कालेजों के साथ-साथ निजी शिक्षा संगठन भी इस आंदोलन में भाग लेने का मन बना चुके हैं। इसके अलावा वकीलों ने भी अदालतों में कार्यवाई का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी है। वहीं हड़ताल में शामिल होते हुए तेलंगाना क्षेत्र के तमाम सिनेमाघरों ने भी फिल्म दिखाने से इंकार कर दिया है।

इधर राज्य सरकार ने हड़ताल पर जानेवाले कर्मचारियों पर शिकंजा कसते हुए कहा है कि वो ऐसे लोगों पर एस्मा लागू करने के साथ उन्हें गिरफ्तार भी करेगी। लेकिन टीआरएस इससे बेख़ौफ है क्योंकि उनका कहना है कि अगर किसी भी कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई की गई तो तेलंगाना समर्थक इससे भड़क उठेंगे, और इसका अंजाम सरकार को भुगतना पड़ेगा। बकौल टीआरएस प्रमुख तेलंगाना के लोग अब क्रोध में है और उसका संयम खत्म हो गया है। यहां बता दें कि अलग तेंलगाना राज्य बनाए जाने की मांग को लेकर हाल ही में इस क्षेत्र के तमाम कांग्रेसी विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके अलावा टीआरएस के विधायकों ने भी अपने पदों से इस्तीफा देते हुए जल्द से जल्द अलग तेलंगाना राज्य बनाए जाने की वकालत की थी। सराकर फिलहाल ये कहकर अपना पक्ष रख रही है कि अलग राज्य बनाना इतना आसान नहीं है क्योंकि ये बहुत भावनात्मक मामला है इसलिए धैर्य से काम लिया जाना चाहिए। वैसे तेलंगाना की तरह ही देश कई प्रदेशों में अलग राज्य बनाए जाने की आवाजें उठ रही हैं अगर तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा दिया जाता है तो उनकी मांगें भी ज़ोर पकड़ सकती है। इस मद्देनज़र सरकार अलग राज्य बनाए जाने की मांग पर टालमटोल कर रही है। बहरहाल जिस तरह से इस बार संयुक्त संघर्ष समिति और टीआरएस ने साझा कार्यवाई की शुरूआत की है उससे लगता है कि हड़ताल को इतनी आसानी से दबाया नहीं जा सकता है। ख़ैर अब ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि सरकार अलग राज्य की मांग को मानती है या नहीं लेकिन इस हड़ताल का सीधा-सीधा मकसद इस मांग को चर्चा में बनाए रखने का है।   

Wednesday 14 September 2011

हॉकी ने बिखेरी चमक


लगातार विवादों और एक के बाद एक मिल रही नाकामियों के कारण लगभग किनारे कर दी गई भारतीय हॉकी को एक बार फिर युवा टीम ने सुर्खियों में ला दिया है। दोबारा कप्तानी संभाल रहे राजपाल सिंह ने युवा खिलाड़ियों के साथ बढ़िया तालमेल बैठाते हुए बिना कोई मैच गंवाए पहली बार एशियन चैंपियंस ट्रॉफी पर अपना कब्ज़ा करके तगड़ी सफलता हासिल की है। निर्धारित समय तक दोनों ही टीमें कोई गोल नहीं कर सकीं लिहाजा मैच क फैसला पेनल्टी शूटआउट के जरिए किया गया। भारत के लिए पेनल्टी शूटआउट में कप्तान राजपाल सिंह, दानिश मुज्तबा, युवराज वाल्मीकि और सरवनजीत सिंह ने गोल करके जीत पक्की कर दी। वहीं गुरविंदर सिंह चांडी गेंद को गोलपोस्ट के अंदर तक पहुंचाने से चूक गए। इन सब के बावजूद जीत का अगर असली नायक किसी को कहा जाए तो वो थे गोलकीपर पी. आर. श्रीजेश जिन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए दो बेहतरीन स्ट्रोक रोककर खिताब पर भारत की मुहर लगवा दी। पाकिस्तान की बात करें तो उनकी तरफ से मोहम्मद रिजवान और वसीम अहमद ही गोलकीपर को छकाने में कामयाब हो सके। खिताबी जीत के बाद टीम के नए कोच माइकल नोब्स की आंखों भर आईं क्योंकि उनकी कोचिंग में टीम किसी बड़े टूर्नामेंट में पहली बार शिरकत कर रही थी। इससे भी बड़ी बात ये थी कि जिस तरह से टीम को विवादों से दो चार होना पड़ रहा है, इसको देखते हुए भी किसी को शायद ही इस खिताब की उम्मीद रही होगी, लेकिन लहरों के विपरीत तैरकर टीम ने साबित कर दिया, कि अगर सही दिशा निर्देश मिले तो वो किसी भी टीम को रौंद सकती है।

इससे पहले जब फाइनल की जंग शुरू हुई तो शायद ही किसी ने ये सोचा होगा कि भारत पाकिस्तान के जबड़े से इस जीत को निकाल सकता है। वैसे ये बात और है कि भले ही इस प्रतियोगिता में भारत ने कोई मैच नहीं गवाया हो मगर रिकॉर्ड पर नज़र डालने के बाद और टीम के हालिया प्रदर्शनों को देखते हुए आशाएं बहुत ज्यादा नहीं थीं। यूं भी भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक 175 मैच हो चुके हैं जिनमें से भारत को 49 में सफलता हाथ लगी है तो 75 में उसे हार का मुंह देखने पड़ा, और 25 में कोई नतीजा नहीं निकल सका है। पिछले साल अजलान शाह कप में साउथ कोरिया के साथ संयुक्त विजेता रही भारत के लिए उसके बाद यह पहली बड़ी सफलता है। इसी साल अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट में भी भारत को पाकिस्तान के हाथों 3-2 से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन इन तमाम नाकामियों से उभरते हुए टीम ने एक जुट होकर खेल दिखाते हुए न सिर्फ मुकाबला जीता बल्कि भारतीय हॉकी में नई ऊर्जा का भी संचार कर दिया। इस जीत के साथ ही भारत ने अगले साल लंदन में आयोजित होने वाले ओलिंपिक मे पदक की उम्मीद फिर से जगा दी है। इससे भी ज्यादा अगर किसी बात पर चर्चा हो सकती है तो वो ये कि युवा टीम होने के बावजूद खिलाड़ियों ने जिस निडरता के साथ हॉकी खेली है उसने दुनिया को दिखा दिया है कि हॉकी में भारत अब भी अपनी बादशाहत कायम रखने का हुनर रखता है, बस जरूरत इस बात की है कि उसे हर प्रकार की राजनीति से दूर रखा जाए।
वैसे इस जीत से अगर कोई सबसे अधिक खुश दिखाई दिया है तो वो थे कोच नोब्स क्योंकि पहले ही टूर्नामेंट में इतनी बड़ी सफलता मिलना वाकई बहुत उत्साह की बात है। खुशी के आंसूओं से भरी आंखों को लिए मीडिया से मुखातिब नोब्स ने इस बाबत सिर्फ इतना ही कहा कि वास्तव में ये बहुत बड़ी जीत है क्योंकि नौजवान खिलाड़ियों वाली इस टीम को खिताब जीतते देखना वाकई अच्छा अनुभव था। दोनों ही टीमों की तारिफ करते हुए नोब्स ने बताया कि मैदान पर बढ़िया हॉकी देखने को मिली। भले ही कोच टीम के तारीफ कर रहे हों लेकिन जिस तरह से युवा खिलाड़ियों के साथ काम करके उन्होंने बेहतरीन रिजल्ट दिया है वो वाकई अद्भुत है। ध्यान रहे कि भारत की तरफ से इस टूर्नामेंट में शिवेंद्र सिंह, तुषार खांडेकर और अर्जुन हालप्पा जैसे सीनियर खिलाड़ी चोट के कारण नहीं खेल रहे थे, वहीं अनुभवी सरदार सिंह और संदीप सिंह ने कैंप को बीच में ही छोड़ दिया था जिसके बाद उन पर बैन लगा दिया गया था। ऐसे में इस बात का कयास लगाने वालों की कोई कमी नहीं थी, जो ये सोचते थे कि टीम इस टूर्नामेंट में बुरी तरह से हारेगी। वहीं नोब्स की दरियादिली का एक नमूना ये भी देखिए की जहां एक तरफ पाकिस्तानी कोच भारतीय खिलाड़ियों को गाली बक रहे थे वहीं भारतीय कोच पाक खिलाड़ियों के बेहतरीन खेल की तारीफ कर रहे थे। इस व्यवहार से नोब्स ने दर्शा दिया है कि वो एक बेहतरीन कोच के साथ ही अच्छे इंसान भी हैं, जो भारतीय टीम को आगे ले जाने की पूरी क्षमता रखते हैं।
  
जैसा कि पहले ही लिखा जा चुका है कि भारत के कई अनुभवी खिलाड़ी इस टूर्नामेंट में नहीं खेल रहे थे, लेकिन भारतीय टीम ने टूर्नामेंट की शुरूआत से अंत तक अपनी लय नहीं खोई और कई मैचों में तो पिछड़ने के बाद शानदार वापसी भी की। भारत के लिए उसकी फॉरवर्ड लाइन सबसे बड़ी ट्रंप कार्ड साबित हुई। भारत ने अपने अभियान की शुरूआत मेजबान चीन को 5-0 से बुरी तरह से धोकर की। इस जीत के बाद भारतीय टीम इतनी बढ़िया लय में आई कि उसने दो मैचों में पिछड़ने के बावजूद भी शानदार वापसी की। जहां मलेशिया के खिलाफ एक गोल से पिछड़ने के बाद उसे 2-1 से हराया तो वहीं पाकिस्तान से भी एक गोल पिछड़ने के बाद उससे ड्रॉ खेला। इससे पहले दोनों ही टीमें 70 मिनट के निर्धारित समय में कोई गोल नहीं कर सकीं थीं। लिहाजा 15 मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया लेकिन बावजूद इसके दोनों ही टीमों की तरफ से गोल नहीं किया जा सका। इसके बाद फैसला ट्राईब्रैकर पर आकर रूक गया जिसको भारतीय खिलाडियों ने अपने बेहतरीन खेल की बदौलत जीत लिया। अब भले ही समीक्षक इस जीत को महान जीतों में शुमार न करें लेकिन जिस तरह से पहले खेल संघों को लेकर विवाद फिर खिलाड़ियों से विवाद के बाद ऐसा लग रहा था कि हॉकी की गाड़ी पटरी से उतर जाएगी है। फिलहाल ये खिताबी जीत टीम के लिए चिलचिलाती धूप में एक ठंडे हवा के झोंके की तरह साबित हो सकती  है जो आने वाले दिनों में भारतीय टीम के लिए प्रेरणा का काम कर सकती है। 

फिर दहला देश का दिल


देश की राजधानी दिल्ली को एक बार फिर आतंकियों के नापाक मंसूबों का शिकार होना पड़ा। दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर बुधवार यानि 7 सितंबर को विस्फोट ठीक कोर्ट की कार्यवाई शुरू होने के वक्त तकरीबन 11 बजे गेट नंबर 4 और 5 के बीच में हुआ था। धमाका इतना जबर्दस्त था कि मौके पर ही दर्जनों लोगों को मौत का निबाला बनना पड़ा। इसके अलावा हादसे में सैकड़ों लोगों बुरी तरह से जख्मी भी हो गए। हादसे के बाद हमेशा की तरह ही जांच एजेंसियों को इसके कारणों का पता लगाने के लिए लगा दिया गया है लेकिन हैरानी की बात ये है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इस मामले को सुलझाने में लगी हुई है लेकिन पुख्ता सबूत के नाम पर उसके हाथ विस्फोट के कई दिन बीत जाने के बावजूद भी खाली हैं। वैसे एनआईए की टीम मामले को सुलझाने में एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं लेकिन अभी तक जो तस्वीर उभरकर सामने आ रही है उसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। अलबत्ता ये बात और है कि प्रत्यक्षदर्शियों के बताए गए हुलिए पर दो स्क्रैच भी जारी किये गए जिसमें एक व्यक्ति को 20 साल के नीचे बताया गया तो दूसरे की उम्र 50 साल के आसपास बताई गई। इसके अलावा हमले का सुराग देने वाले को भी 5 लाख रूपए बतौर ईनाम देने की घोषणा की गई लेकिन इससे भी कुछ खास फायदा नहीं हुआ।


याद रहे कि दिल्ली उच्च न्यायालय के पास ही करीब छह महीने पहले भी एक विस्फोट हुआ था, लेकिन विस्फोट इतना मारक नहीं था कि उसमें कोई हताहत हो सके। कई जानकार उस धमाकों को इस विस्फोट की रिहर्सल के तौर पर भी देख रहे हैं। अब ये बात सही भी हो सकती है क्योंकि उस समय इस धमाकों को मामूली बताकर भुला दिया गया था, लेकिन इस बार आतंकियों ने सुरक्षा व्यवस्था को तार–तार करते हुए धमाके अंजाम दे डाला और तमाम मासूमों की जान ले ली। वहीं इससे पहले देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भी दो महीने पहले 13 जुलाई 2011 शाम के तकरीबन 7 बजे के आसपास तीन ज़बर्दस्त बम धमाके हुए थे जिसमें कम से कम 17 लोग मारे गए थे और 131 लोग बुरी तरह से घायल हो गए थे। उसके बाद भी सुरक्षा एजेंसियों ने कहा था कि हमले के बाबत उनके पास कोई पुख्ता जानकारी मौजूद नहीं थी। और इस बार भी एजेंसियों का यही कहना है कि उनके पास इस हमले से जुड़ी हुई कोई खास जानकारी नहीं थी। तब भी गृहमंत्रालय ने ये कहते हुए एजेंसियों का बचाव किया था कि  इस हमले के लिए वो इंटेलीजेंस की चूक नहीं मान सकते हैं। बताते चलें कि राजधानी क्षेत्र में पिछले 15 सालों में इतने ही बम धमाके हो चुके हैं लेकिन हमारी सरकार इनको कम बताकर अपनी पीठ थपथपा लेती है। और तो और अगर देश में हाल ही में हुए बम धमाकों पर नज़र दौड़ाई जाए तो 2011 में मुंबई और दिल्ली, 2010 में वाराणसी और पुणे और 2008  में मुंबई, असम, इम्फाल, मालेगांव, मोदासा, दिल्ली, अहमदाबाद, जयपुर और रामपुर जैसे इलाकों में भी धमाके हुए लेकिन इन धमाकों को अंजाम देने के नाम पर गिने चुने लोग ही गिरफ्त में आ सके। यहां तक कि इसी साल जुलाई में मुंबई में हुए धमाकों में तो अब तक कोई गिरफ़्तारी भी नहीं हो सकी है। इसकी के साथ मुंबई में 2006 में लोकल ट्रेनों में हुए धमाकों कोई शायद ही भूल पाए जब लमसम एक ही समय पर हुए सात विस्फोटों 200 से भी अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। वहीं मुंबई पर हुए आतंकी हमले को कौन भूल पाएगा जिसमें 10 हमलावरों ने ताज होटल समेत कई स्थानों को अपने कब्जे में लिया था और सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इन हमलों को करने वालों में से एक को जिंदा पकड़ लिया गया था जो अभी भी जेल में बंद है। करोड़ों रूपए की सुरक्षा मे रखे गए इस आतंकी की इस खातिरदारी पर कई सामाजिक और राजनैतिक दल सवाल भी उठा चुके हैं।

चलिए इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि इस तरह के हमलों के बाद ज़िम्मेदार लोग किस तरह से अपना दामन बचाने की जुगत में लग जाते हैं ये बताना भी बेहद जरूरी है। दरअसल हमले के बाद केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि हम  कोशिश कर रहे हैं कि धमाके के लिए जिम्मेदार लोगों का पता लगाकर उन्हें सज़ा दिलाई जाए। इस आश्वासन के बाद उन्होंने लोगों को सतर्क रहने का आग्रह करते हुए बताया कि तमाम प्रयासों के बावजूद भी कोई ये नहीं कह सकता कि अब आगे इस तरह के आतंकी हमले नहीं होंगे। इस बयान से साफ पता चल रहा है कि गृहमंत्री इस बयान के सहारे अपना दामन बचाने की कोशिश में लगे हुए है। असल में वो शायद ये बताना चाह रहे हैं कि अगर अगली बार कोई हमला हुआ तो सरकार इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं होगी, क्योंकि उन्होंने पहले ही सबको सचेत रहने को कहा था। फिलहाल धमाके के बाद आए कई ई-मेल की बाबत बताते हुए उन्होंने कहा कि तीसरे मेल ज्यादा गंभीर नजर नहीं आ रहा है लेकिन फिर भी इसकी जांच गहनता से की जा रही है और गुजरात सरकार के साथ ही अहमदाबाद पुलिस को भी अलर्ट कर दिया गया है। बकौल चिदंबरम उन्हें वाराणसी और बेंगलूरु में हुए धमाकों लिए  आरोपी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उन्होंने खुफिया जानकारियां उपलब्ध कराईं थीं। वहीं इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी दिल्ली हाईकोर्ट में हुए धमाके के बाद कहा था कि आतंकवादी हमारी सुरक्षा व्यवस्था में मौजूद खामियों का फायदा उठा रहे हैं। इसी लिए युवाओं में कट्टरता की भावना को पनपने से रोकने के साथ ही खुफिया जानकारियां जुटाने की प्रक्रिया को भी चुस्त किये जाने की जरूरत है।
दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय एकता परिषद यानि एनआईसी की 15वीं बैठक में भी प्रधानमंत्री ने कहा, कि दिल्ली में हुए विस्फोट ने ये साबित कर दिया है, कि खुफिया मामलों में ज़रा सी चूक भी  भारी पड़ सकती है। अब जब पीएम खुद ही मान रहे हैं कि ज़रा सी चूक भी ख़तरनाक साबित हो सकती है तो फिर इससे बचने के लिए इंतजाम क्यों नहीं किये जाते हैं। वहीं जब दिल्ली जैसी जगह में हाईकोर्ट तक सुरक्षित नहीं है जहां से संसद और राष्ट्रपति भवन नजदीक है तो फिर मुल्क में किस जगह को सुरक्षित माना जा सकता है। इसलिए सिर्फ बयानबाजियों के सहारे अपना काम चलाने से ज्यादा जरूरी है ज़मीनी स्तर पर सुधार किये जाएं ताकि मुल्क में लोग खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।

लेकिन सबसे अधिक दुख तो इस बात को लेकर होता है कि जिन लोगों को अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए आगे आना चाहिए वो ही लोग बेसिर-पैर की बातें करके इस तरह के मामलों की गंभीरता समाप्त कर देते हैं। इस कड़ी में सबसे पहले बात करते हैं पर्यटन मंत्री सुबोकांत सहाय की जिंहोंने हमले के बाद अपने ख्याल कुछ इस तरह से ज़ाहिर किये जिसे सुनकर शायद ही किसी देशवासी को गुस्सा न आए। पहले से ही अपने ऊटपटांग बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले सहाय ने कहा कि अब लोग इस तरह के माहौल में जीने के आदी हो चुके हैं। अब इसे क्या कहा जाए कि दर्जनभर से ऊपर लोग मारे जा चुके हैं लेकिन मंत्री जी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनके मुताबिक लोग अब इसके आदी हो चुके हैं। वैसे तीन महीने पहले भी जब मुंबई में तीन जगह धमाके हुए थे तो मंत्रीजी ने विस्फोट की जानकारी मिलने के बाद भी फैशन शो का आनंद लेना ही ज्यादा बेहतर समझा था। हद तो तब हो गई थी जब इस धामके पर अपनी प्रतिक्रिया में कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने कह दिया था, कि इस तरह के हमले तो अमेरिका जैसे देशों को भी झेलने पड़ते हैं इसलिए इनके ऊपर पूरी तरह से काबू पाना संभव नहीं और कुछ हमले तो देश को झेलने ही होंगे। जिस तरह से इन नेताओं के बयान हैं, उससे ये पूरी तरह से साफ हो जाता है कि हमारे नेता अपने दर्द की तुलना दूसरे के दुख से करके ज्यादा खुश रहते हैं। अगर ठीक से याद हो तो अमेरिका पर 2001 में हुए हमले के बाद किसी भी तरह की आतंकी कार्यवाई को नहीं झेलना पड़ा है। लेकिन हमारे सफेदपोश को सिर्फ यही याद रहता है कि अमेरिकी भी इस तरह की दिक्कत को झेल चुका है लेकिन उसके बाद उसने इसे किस तरह से रोका इसे कोई नहीं जानना चाहता है।
बहरहाल विस्फोट के बाद एनआईए के टीम के साथ ही सीएफएसल टीम फॉरेंसिक जानकारियां इकट्ठा करने में जुट गई है। सरकार ने भी हाईकोर्ट के आसपास सभी जगह सीसीटीवी कैमरे लगवाने की बात कहकर ये साबित करने की कोशिश कर दी है कि वो इस तरह के हमलों से कितनी अधिक चिंतित है। वहीं पुलिस भी यहां वहां पोस्टर चिपकार संदिग्धों की पहचान करने का प्रयास कर रही है, लेकिन फिलहाल उसके हाथ भी खाली हैं। सरकार कहती तो है कि सुरक्षा के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता लेकिन जब इस तरह के हमलों से दो चार होना पड़ता है तो ये आइने की तरह साफ हो जाता है कि सबकुछ महज खानापूर्ती के लिए ही किया जा रहा है।