Wednesday 14 September 2011

हॉकी ने बिखेरी चमक


लगातार विवादों और एक के बाद एक मिल रही नाकामियों के कारण लगभग किनारे कर दी गई भारतीय हॉकी को एक बार फिर युवा टीम ने सुर्खियों में ला दिया है। दोबारा कप्तानी संभाल रहे राजपाल सिंह ने युवा खिलाड़ियों के साथ बढ़िया तालमेल बैठाते हुए बिना कोई मैच गंवाए पहली बार एशियन चैंपियंस ट्रॉफी पर अपना कब्ज़ा करके तगड़ी सफलता हासिल की है। निर्धारित समय तक दोनों ही टीमें कोई गोल नहीं कर सकीं लिहाजा मैच क फैसला पेनल्टी शूटआउट के जरिए किया गया। भारत के लिए पेनल्टी शूटआउट में कप्तान राजपाल सिंह, दानिश मुज्तबा, युवराज वाल्मीकि और सरवनजीत सिंह ने गोल करके जीत पक्की कर दी। वहीं गुरविंदर सिंह चांडी गेंद को गोलपोस्ट के अंदर तक पहुंचाने से चूक गए। इन सब के बावजूद जीत का अगर असली नायक किसी को कहा जाए तो वो थे गोलकीपर पी. आर. श्रीजेश जिन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए दो बेहतरीन स्ट्रोक रोककर खिताब पर भारत की मुहर लगवा दी। पाकिस्तान की बात करें तो उनकी तरफ से मोहम्मद रिजवान और वसीम अहमद ही गोलकीपर को छकाने में कामयाब हो सके। खिताबी जीत के बाद टीम के नए कोच माइकल नोब्स की आंखों भर आईं क्योंकि उनकी कोचिंग में टीम किसी बड़े टूर्नामेंट में पहली बार शिरकत कर रही थी। इससे भी बड़ी बात ये थी कि जिस तरह से टीम को विवादों से दो चार होना पड़ रहा है, इसको देखते हुए भी किसी को शायद ही इस खिताब की उम्मीद रही होगी, लेकिन लहरों के विपरीत तैरकर टीम ने साबित कर दिया, कि अगर सही दिशा निर्देश मिले तो वो किसी भी टीम को रौंद सकती है।

इससे पहले जब फाइनल की जंग शुरू हुई तो शायद ही किसी ने ये सोचा होगा कि भारत पाकिस्तान के जबड़े से इस जीत को निकाल सकता है। वैसे ये बात और है कि भले ही इस प्रतियोगिता में भारत ने कोई मैच नहीं गवाया हो मगर रिकॉर्ड पर नज़र डालने के बाद और टीम के हालिया प्रदर्शनों को देखते हुए आशाएं बहुत ज्यादा नहीं थीं। यूं भी भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक 175 मैच हो चुके हैं जिनमें से भारत को 49 में सफलता हाथ लगी है तो 75 में उसे हार का मुंह देखने पड़ा, और 25 में कोई नतीजा नहीं निकल सका है। पिछले साल अजलान शाह कप में साउथ कोरिया के साथ संयुक्त विजेता रही भारत के लिए उसके बाद यह पहली बड़ी सफलता है। इसी साल अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट में भी भारत को पाकिस्तान के हाथों 3-2 से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन इन तमाम नाकामियों से उभरते हुए टीम ने एक जुट होकर खेल दिखाते हुए न सिर्फ मुकाबला जीता बल्कि भारतीय हॉकी में नई ऊर्जा का भी संचार कर दिया। इस जीत के साथ ही भारत ने अगले साल लंदन में आयोजित होने वाले ओलिंपिक मे पदक की उम्मीद फिर से जगा दी है। इससे भी ज्यादा अगर किसी बात पर चर्चा हो सकती है तो वो ये कि युवा टीम होने के बावजूद खिलाड़ियों ने जिस निडरता के साथ हॉकी खेली है उसने दुनिया को दिखा दिया है कि हॉकी में भारत अब भी अपनी बादशाहत कायम रखने का हुनर रखता है, बस जरूरत इस बात की है कि उसे हर प्रकार की राजनीति से दूर रखा जाए।
वैसे इस जीत से अगर कोई सबसे अधिक खुश दिखाई दिया है तो वो थे कोच नोब्स क्योंकि पहले ही टूर्नामेंट में इतनी बड़ी सफलता मिलना वाकई बहुत उत्साह की बात है। खुशी के आंसूओं से भरी आंखों को लिए मीडिया से मुखातिब नोब्स ने इस बाबत सिर्फ इतना ही कहा कि वास्तव में ये बहुत बड़ी जीत है क्योंकि नौजवान खिलाड़ियों वाली इस टीम को खिताब जीतते देखना वाकई अच्छा अनुभव था। दोनों ही टीमों की तारिफ करते हुए नोब्स ने बताया कि मैदान पर बढ़िया हॉकी देखने को मिली। भले ही कोच टीम के तारीफ कर रहे हों लेकिन जिस तरह से युवा खिलाड़ियों के साथ काम करके उन्होंने बेहतरीन रिजल्ट दिया है वो वाकई अद्भुत है। ध्यान रहे कि भारत की तरफ से इस टूर्नामेंट में शिवेंद्र सिंह, तुषार खांडेकर और अर्जुन हालप्पा जैसे सीनियर खिलाड़ी चोट के कारण नहीं खेल रहे थे, वहीं अनुभवी सरदार सिंह और संदीप सिंह ने कैंप को बीच में ही छोड़ दिया था जिसके बाद उन पर बैन लगा दिया गया था। ऐसे में इस बात का कयास लगाने वालों की कोई कमी नहीं थी, जो ये सोचते थे कि टीम इस टूर्नामेंट में बुरी तरह से हारेगी। वहीं नोब्स की दरियादिली का एक नमूना ये भी देखिए की जहां एक तरफ पाकिस्तानी कोच भारतीय खिलाड़ियों को गाली बक रहे थे वहीं भारतीय कोच पाक खिलाड़ियों के बेहतरीन खेल की तारीफ कर रहे थे। इस व्यवहार से नोब्स ने दर्शा दिया है कि वो एक बेहतरीन कोच के साथ ही अच्छे इंसान भी हैं, जो भारतीय टीम को आगे ले जाने की पूरी क्षमता रखते हैं।
  
जैसा कि पहले ही लिखा जा चुका है कि भारत के कई अनुभवी खिलाड़ी इस टूर्नामेंट में नहीं खेल रहे थे, लेकिन भारतीय टीम ने टूर्नामेंट की शुरूआत से अंत तक अपनी लय नहीं खोई और कई मैचों में तो पिछड़ने के बाद शानदार वापसी भी की। भारत के लिए उसकी फॉरवर्ड लाइन सबसे बड़ी ट्रंप कार्ड साबित हुई। भारत ने अपने अभियान की शुरूआत मेजबान चीन को 5-0 से बुरी तरह से धोकर की। इस जीत के बाद भारतीय टीम इतनी बढ़िया लय में आई कि उसने दो मैचों में पिछड़ने के बावजूद भी शानदार वापसी की। जहां मलेशिया के खिलाफ एक गोल से पिछड़ने के बाद उसे 2-1 से हराया तो वहीं पाकिस्तान से भी एक गोल पिछड़ने के बाद उससे ड्रॉ खेला। इससे पहले दोनों ही टीमें 70 मिनट के निर्धारित समय में कोई गोल नहीं कर सकीं थीं। लिहाजा 15 मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया लेकिन बावजूद इसके दोनों ही टीमों की तरफ से गोल नहीं किया जा सका। इसके बाद फैसला ट्राईब्रैकर पर आकर रूक गया जिसको भारतीय खिलाडियों ने अपने बेहतरीन खेल की बदौलत जीत लिया। अब भले ही समीक्षक इस जीत को महान जीतों में शुमार न करें लेकिन जिस तरह से पहले खेल संघों को लेकर विवाद फिर खिलाड़ियों से विवाद के बाद ऐसा लग रहा था कि हॉकी की गाड़ी पटरी से उतर जाएगी है। फिलहाल ये खिताबी जीत टीम के लिए चिलचिलाती धूप में एक ठंडे हवा के झोंके की तरह साबित हो सकती  है जो आने वाले दिनों में भारतीय टीम के लिए प्रेरणा का काम कर सकती है। 

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