Friday 16 September 2011

क्या नहीं थमेगी मंहगाई


संसद में बैठकर जब प्रधानमंत्री और उनके सहयोगी देश को ये बताने की कोशिश करते हैं कि वो मंहगाई के मुद्दे पर गंभीर हैं और आने वाले दिनों में इस पर काबू भी पा लिया जाएगा तो ज़ेहन में सिर्फ एक ही सवाल कौंधता है कि सफेदपोश नेता कब तक जनता के साथ छलावा करते रहेंगे। कभी दालों के दामों में बेतहाशा वृद्धि देखने को मिलती है तो कभी एक ही साल के अंदर दूध की कीमतों को कई बार बिना वजह के ही बढ़ा दिया जाता है। हद तो तब हो जाती है जब लाखों टन अनाज बाहर पड़े-पड़े सड़ जाता है, लेकिन उसे जरूरतमंदों के पास तक सरकार ये कहकर नहीं पहुंचाती है कि वो उन पर पहले से ही बहुत मेहरबानी कर चुकी है। हो सकता है कि ये सही भी हो लेकिन जिन गरीबों के आंकड़े सरकार जमा करती है उनमें से अधिकतर अच्छे खासे घरों से ताल्लुक रखते हैं। यूं भी सरकार ने कई कमेटियों का गठन करके गरीबों की पहचान करने का प्रयास किया लेकिन हर रिपोर्ट के अलग ही आंकड़े सामने आए, जिससे ये जानने में भारी दिक्कत हुई कि आखिर देश में कुल गरीबों की तादाद आखिर कितनी है।

अलबत्ता इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि हम यहां सवाल बेलगाम मंहगाई पर कर रहे हैं जो अनाप-शनाप बढ़ती ही जा रही है। दरअसल कल रात से सरकारी कंपनियों ने पेट्रोल की कीमतों में 3.14 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी करके आम आदमी की मुश्किलों में इजाफा कर दिया है। कहानी सिर्फ यहीं समाप्त नहीं होती बल्कि सरकार की नज़र घर की रसोई पर भी आकर टिक गई है और वो आज कल रसोई गैस की कीमतों को बढ़ाने का फैसला करने की फिराक में है। अब इसे क्या कहा जाए कि एक तरफ तो बताया जाता है कि हर तरफ विकास की लहर दौड़ रही है लेकिन इस ग्रोथ में गरीब आदमी किस बेरहमी से कुचलकर मर रहा है किसी को कोई परवाह नहीं है। सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के नेतृत्व वाली एक कमेटी घरेलू गैस सिलेंडर पर सब्सिडी घटाने के साथ ही एक परिवार को सदस्यों के हिसाब से साल में चार से छह सिलेंडर देने पर विचार कर रही है। अब अगर ऐसा होता है तो किसी को भी अतिरिक्त सिलेंडर लेने के लिए तकरीबन 750 रूपए तक खर्च करने पड़ सकते हैं। यानि देश के 80 फीसद निर्धन लोगों के सामने इन फैसलों से भारी मुसीबत खड़ी होने वाली है। अगर किसी आदमी ने कर्ज करके एक मोटरसाइकिल निकलवा भी ली है तो अब शायद ही वो उसे चलाने की हिम्मत जुटा सके। उसी तरह से अब घर में कई बार बनने वाली चाय पर भी बैन लग जाए तो कोई ताज्जुब की बात नहीं होगी। वैसे इस बात पर कांग्रेस को घेरा जा सकता है कि कभी उसी ने ये नारा दिया था कि कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ लेकिन अब लगता है कि कांग्रेस का हाथ सिर्फ गरीब आदमी की जेब पर है कि उसे कैसे खाली किया जाए।
  
फिलहाल दिल्ली में जहां पेट्रोल 66.84 रुपये प्रति लीटर मिलेगा तो वहीं मुंबई में भी ये 71.28 रुपए प्रति लीटर और चेन्नई में 70.82  प्रति लीटर की दर से लोगों तक पहुंच सकेगा। याद रहे की इससे पहले तेल कंपनियों ने 15 मई को ही पेट्रोल के दामों में 5 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी की थी, लेकिन तीन महीने के अंतराल पर ही तीन रूपए की वृद्धि किसी के भी गले नहीं उतर रही है। फिलहाल कंपनियां खुद को ये कहकर बचाने के प्रयास में जुट गईं हैं कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर पहुंच चुकी है लिहाजा घाटा कम करने के लिए उन्हें कीमतें बढ़ाने को मजबूर होना पड़ा है। इसके अलावा एक कारण ये भी गिनाया जा रहा है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमज़ोर हुआ है जिसके कारण पेट्रोल की कीमतों में उछाल आया है। यहां इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी हो जाता है कि जून 2009 में सरकार ने पेट्रोल को नियंत्रणमुक्त कर दिया था जिसके बाद कंपनियों को कीमतें निर्धारित करने का अधिकार मिल गया था और यही वजह है कि इसके बाद से पैट्रोल की कीमतों में तकरीबन 20 रूपए की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। फिलहाल बीजेपी ने इस बढ़ोत्तरी के खिलाफ पूरे देश में आंदोलन चालने की बात कही है लेकिन बढ़ी हुई कीमतें वापस ली जाएंगी, ये प्रश्न यूपीए के शासनकाल को देखते हुए अविश्वसनिए सा लगता है।

  

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