Thursday 1 September 2011

एक पत्थर तो तबीयत से उछालों...


किसी शायर ने क्या खूब कहा है, के कौन कहता है कि आसमान में सुराग नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। दरअसल हम यहां बात कर रहे हैं 74 साल के युवा अन्ना हज़ारे की जिन्होंने 16 अगस्त से जनलोकपाल बिल को संसद में रखे जाने की मांग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान पर अनशन शुरू किया और आखिरकार सरकार को अपनी मांगों पर झुकाकर उन्होंने अपना अनशन 12वें दिन यानि 28 अगस्त को समाप्त कर लिया। वैसे अन्ना द्वारा अनशन तोड़ने से एक दिन पहले देश की सबसे बड़ी पंचायत में इस पर लंबी-चौड़ी बहस भी हुई लेकिन इसके बाद लगभग सभी दलों ने अन्ना द्वारा सुझाए गए तीन बिंदुओं पर अपनी सहमति देते हुए इन्हें मान लिया। ध्यान रहे कि अन्ना ने जिन तीन मुद्दों का ज़िक्र किया था वो इस तरह से हैं, एक तो राज्यों में लोकायुक्त की न्युक्ति, दूसरा सिटीजन चार्टर और तीसरा नीचले स्तर के अधिकारियों को भी लोकापाल के दायरे में लाया जाए। बहस के दौरान हालांकि तीनों ही मुद्दों पर बीजेपी ने अपनी हरी झंडी तो दे दी, लेकिन यहां पीएम को भी लोकपाल के दायरे में रखे जाने की बात कही गई। नेता प्रतिपक्ष और सुषमा स्वराज ने पार्टी की तरफ से मोर्चा संभालते हुए कहा कि उन्हें पीएम को इसके दायरे में रखे जाने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन कई विवादित मामले उजागर होने के बावजूद भी वो न्यायपालिका को इसके अधीन रखने की पक्षधर नहीं हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार पर सीबीआई के दुरूपयोग का आरोप लगात हुए भी सुषमा ने कहा कि ये जरूरी हो गया है कि इसके ऊपर से सरकार की मनमानी को कम किया जाए। तल्ख लहजे में सरकार को घेरते हुए उन्होंने ये भी बताया कि लोकपाल को चुनने की प्रक्रिया में भी सत्ताधारियों की संख्या को कम किया जाना चाहिए।     


इससे पहले प्रणव मुखर्जी ने अन्ना के प्रस्ताव को लोकसभा में रखा, जिसे सभी सांसदों ने अपनी मेजें थपथपाकर पारित कर दिया। इसी तरह से राज्य में भी इस प्रस्ताव को पास कर दिया गया। सरकार की तरफ से बोलते हुए सांसद संदीप दीक्षित ने कहा कि अन्ना के प्रस्ताव में भी कई बार फेरबदल किये जा चुके हैं इसलिए ऐसा नहीं है कि उनके द्वारा बनाया गया बिल एकदम सही हो। वहीं जिस तरह से सिविल सोसाइटी और सरकार के बीच मसौदों को लेकर जो मतभेद उभरा था उसका भी जिक्र करते हुए संदीप ने कहा कि कुल मिलाकर 40 बिंदुओं पर मतभेद था लेकिन सरकार ने बातचीत के द्वारा इनमें से 34 पर अपनी सहमति दे दी थी। बकौल संदीप ऐसा शायद ही देखने को मिले कि सरकार इतनी अधिक मांगों को मानने के लिए तैयार हो गई हो। इसी तरह से सांसद शरद यादव ने भी मजाकिया लहजे में कहा कि अन्ना के मंच से नेताओं की सही तस्वीर पेश की जानी चाहिए क्योंकि तमाम आरोपों को खामोशी के साथ सुनकर नेताओं ने दिखा दिया है कि वो लोकतंत्र का कितना सम्मान करते हैं। वहीं जिस तरह से लगातार 12 दिन से टीवी पर अन्ना छाए हुए हैं उस पर भी कटाक्ष करते हुए शरद ने तंज कसा कि देश के कई हिस्सों में इस समय बाढ़ ने तबाही मचाई हुई है, लेकिन इससे जुड़ी ख़बरें टीवी चैनलों से पूरी तरह गायब हैं।


फिलहाल तमाम जानकार अन्ना के अनशन की तुलना न सिर्फ जयप्रकाश नरायण के आंदोलन से कर रहे हैं, बल्कि कई मायनों में इसे उसके बराबर का भी मान रहे हैं। याद रहे कि जयप्रकाश नारायण ने 1974 में संपूर्ण क्रांति का आवाहन करके मौजूदा सरकार को हिला कर रखा दिया था। वहीं इस बिल को पास करवाने में अन्ना की भी मिसाल दी जा सकती है कि जो काम सालों में नहीं हो सका उसे आज के गांधी अन्ना ने सिर्फ 12 दिन के अनशन में ही पूरा कर दिखाया। कुल मिलाकर 8 बार संसद में पेश हो चुके लोकपाल बिल को कभी भी पास नहीं करवाया जा सका। यूं तो बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं लेकिन दोनों के ही शासनकाल में इसे सदन में रखा तो जरूर गया लेकिन अमलीजामा कभी नहीं पहनाया जा सका। लेकिन अन्ना ने अपने साहस से दिखा दिया है कि अगर किसी भी काम को कराने का हौंसला बुलंद हो तो रास्ते खुद ब खुद तैयार हो जाते हैं। फिलहाल जिस तरह से लोगों ने अन्ना को अपना समर्थन दिया है उसे इन लाइनों का सहारा लेकर बयान किया जा सकता है कि, मैं अकेला चला था जानिबे मंज़िल की तरफ लेकिन, लोग आते गए और काफिला बनता गया।

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