Thursday 1 September 2011

बड़े बेआबरू होकर...


भारतीय क्रिकेट टीम का इंग्लैंड दौरा अगर एक बुरे सपने की तरह भुला दिया जाए तो ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि टीम ने जिस तरह का प्रदर्शन किया है उसने हर भारतीय का सर शर्म से नीचा कर दिया है। टीम इंडिया के खेल को देखकर एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि ये टीम दुनिया की नंबर एक टीम है और इसमें सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, द्रविड़ और विरेंद्र सहवाग जैसे दुनिया के नामी खिलाड़ी खेल रहे हैं। पूरी सिरीज में भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर गौर किया जाए तो लगेगा कि टीम वहीं पर जीत के इरादे से नहीं बल्कि इस खूबसूरत देश के दिलकश नज़ारों का मज़ा लेने के लिए पहुंची थी। इससे पहले की चर्चा इंग्लैंड दौरे पर शुरू की जाए एक नज़र डाल लेते हैं भारतीय टीम द्वारा पिछले चंद महीनों में किये गए प्रदर्शन पर, क्योंकि जब से कमान कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के हाथों में आई है तब से वो लगातार आठ टेस्ट  सीरीज जीत चुके हैं। और तो और उन्होंने अपनी चतुर कप्तानी की बदौलत ही मेजबान वेस्टइंडीज को उसी के घर में सचिन तेंदुलकर, गौतम गंभीर, विरेंद्र सहवाग और ज़हीर खान की अनुपस्थिति में रौंदकर बड़ी कामयाबी दर्ज की थी। इसी के बाद लगभग सभी भारतीय क्रिकेट प्रेमी इस बात का अंदाजा लगाने में मशरूफ हो गए थे, कि भारतीय टीम मेजबान इंग्लैंड को तगड़ी चुनौती पेश करेगी। वैसे ऐसे कयास लगने लाजिमी भी थे, क्योंकि टीम का साथ देने के लिए इस सिरीज में सचिन समेत चारों बड़े खिलाड़ी जुड़ चुके थे। अब कप्तान धोनी को ये बताने में भी कोई हिचक नहीं हुई कि उनकी टीम कागज़ों पर अंग्रेज टीम का मुकाबला करने के लिए बिल्कुल तैयार है। लेकिन इसके बाद जो कुछ फिरंगियों की ज़मीन पर हुआ उसने विश्वविजेताओं को सर झुकाने के लिए मजबूर कर दिया।

पहला टेस्ट जो कि ऐतिहासिक मैदान लॉर्डस पर खेला गया था और इसमें भी सबसे खास बात ये थी कि टेस्ट इतिहास में कुल मिलकार ये 2000वां टेस्ट था, जिसमें सभी इस बात की उम्मीद कर रहे थे कि सचिन तेंदुलकर यहां अपना सौंवा शतक जड़कर इस टेस्ट को यादगार बना देंगे, लेकिन यहां न उनका शतक बना और न ही टीम इंडिया अपनी हार बचाने में कामयाब हो पाई, नतीजतन मेजबानों के हाथों 196 रनों की करारी हार को झेलने के लिए मजबूर होना पड़ा। दूसरा टेस्ट जो नॉटिंघम में खेला गया और इसे भी भारतीय खिलाड़ी 319 रनों के विशाल अंतर से हार गए। सचिन, गंभीर, लक्ष्मण और धोनी के बेअसर प्रदर्शनों ने टीम को हार के मुंह में धकेल दिया। ख़ैर इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि तीसरे मुकाबले में सहवाग टीम के साथ जुड़ चुके थे और अभिनव मुकंद को हटाकर उनको टीम में जगह दी गई। इस दौरे में पहली बार टीम में रखे गए सहवाग से सभी को बहुत अधिक उम्मीद थी लेकिन इंग्लैंड के मजबूत गेंदबाज़ी अटैक के सामने ये विस्फोटक बल्लेबाज़ दोनों पारियों में खाता भी नहीं खोल सके। वहीं अब तक दोनों टेस्ट मैचों में शतक बनाने वाले द्रविड़ यहां कुछ खास नहीं कर सके और टीम को इसका खामियाजा एक पारी और 242 रनों की शर्मनाक हार के रूप में चुकाना पड़ा। चौथा टेस्ट जो ओवल मैदान पर खेला गया और जब पहले दिन का खेल बारिश की भेंट चढ़ गया तो सभी ऐसा अनुमान लगाने लगे थे कि भारतीय टीम कम से कम इस मैच को तो ड्रा करा ही लेगी लेकिन नतीजा इसके विपरीत रहा क्योंकि पहली पारी में मेजबानों के 591 रनों के जबाव में राहुल द्रविड़ के शतक के बावजूद टीम को फॉलोऑन खेलने को मजबूर होना पड़ा। दिन भर खेलने के बाद जैसे ही द्रविड आउट हुए तो उन्हें महज पांच मिनट के अंदर ही वापस मैदान पर आना पड़ा मगर यहां भी उनकी दाद देनी चाहिए क्योंकि इस पारी में भी संभलकर खेल रहे मिस्टर भरोसेमंद को अंपायर की गलती के कारण पावेलियन लौटना पड़ा। वैसे सचिन ने इस सिरीज में पहली बार अपने नाम के अनुसार खेल दिखाते हुए 91 रन तो बनाए लेकिन टीम को पारी की हार से वो भी बचा नहीं पाए। उनके अलावा पुछल्ले बल्लेबाज़ अमित मिश्रा ने भी शीर्ष क्रम के बल्लेबाज़ों को शर्मसार करते हुए 84 रन बना डाले मगर इन दोनों के अथक प्रयासों के बावजूद भी टीम को 8 रन और एक पारी से हार का मुंह देखने को मजबूर होना पड़ा।

वहीं पूरे दौरे पर अगर किसी खिलाड़ी ने अपने नाम के अनुसार प्रदर्शन किया है तो वो वॉल ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर राहुल द्रविड़ ही हैं जिन्होंने अपने खेल से दिखा दिया कि विपरीत परिस्थितियों में भी कैसे खेला जाता है। चार टेस्टों में दबाव के समय कुल मिलाकर तीन बेहतरीन शतक बनाकर टीम की इज्जत बचाने वाले द्रविड़ ने टीम के वरिष्ठ खिलाड़ियों को फिर सिखाया, कि विदेशी पिचों पर बल्लेबाज़ी कैसे की जाती है। अपने जुझारूपन का अदभुत परिचय देते हुए मिस्टर भरोसेमंद ने शुरू से आखिर तक टिककर बैटिंग करते हुए अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का भी लाजवाब नमूना पेश किया। द्रविड़ के लिए मुश्किलों को झेलना इसलिए भी अधिक कठिन रहा क्योंकि कोई भी बड़ा बल्लेबाज़ उनके साथ खड़े होने तक का भी साहस नहीं दिखा सका। वेरी वेरी स्पेशल के नाम से पहचाने जाने वाले लक्ष्मण भी इस दौरे पर बुझे हुए नज़र आए क्योंकि उनके बल्ले से कोई ऐसी पारी नहीं निकल सकी जिस पर बात की जा सके। कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय टीम की पूरी रणनीति ही इन तीनों खिलाड़ियों के इर्दगिर्द बुनी जाती है ऐसे में अगर इन्हीं के द्वारा प्रदर्शन नहीं किया जाएगा तो टीम की दुर्दशा तो इसी तरह की होना लाजिमी है। अब यहां एक सवाल ये भी ख़ड़ा होता कि इन तीनों ही बल्लेबाज़ों की उम्र तकरीबन संयास लेने के आस-पास है और ऐसे में इनकी जगह भरने के लिए हमारे पास कौन-कौन से विकल्प मौजूद हैं। हालांकि तीन चार नामों पर चर्चा हो सकती है लेकिन बड़ा प्रशन यह उठता है कि क्या इनके पास इन महान खिलाड़ियों की जगह भरने की काबिलियत है। टेस्ट मैचों में सचिन, द्रविड़ और लक्ष्मण के इतने शतक हैं जितने की शायद समूची विरोधी टीम के भी न हों। अब ऐसे में सुरेश रैना, विराट कोहली, युवराज सिंह और चेतेश्वर पुजारा जैसे नामों पर शायद ही किसी को भरोसा हो कि वो इनकी भरपाई करने को मद्दा रखते हों, क्योंकि टैलेंट होने के बावजूद भी इनके खेल में निरंतरता का घोर अभाव है। युवराज सिंह तो 300 के आस पास वनडे खेल चुके हैं लेकिन 34 टेस्ट मैचों में उन्होंने कोई बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ा है। यही हाल रैना और कोहली का है जो एक सिरीज में तो शेर नज़र आते हैं, लेकिन अगले ही टूर्नामेंट में इनकी हालात देखने लायक होती है। इस लिस्ट में ले-देकर पुजारा का नाम बचता है, जो महज एक ही सिरीज खेल सके हैं, ऐसे में अभी उनकी प्रतिभा पर कोई कमेंट करना जल्दबाजी होगा।

अलबत्ता अगर इन बातों को दरकिनार भी कर दिया जाए तो भी हमारी टीम के लिए चिंता की बात एक और है कि गेंदबाजों की मददगार पिचों पर भी हमारे गेंदबाजों ने जिस तरह का प्रदर्शन किया है, उसने बता दिया है कि हमारा अटैक ज़हीर खान के बिना कुछ भी नहीं है। ऐसे में उनका बैकअप भी तैयार किया जाना चाहिए क्योंकि जिस तरह से वो फिटनेस समस्याओं से जूझ रहे हैं तो ऐसे में अपनी रिज़र्व बैंच को इतना मजबूत करने की जरूरत ताकि वो उनकी अनुपस्थिति में भी असरदार खेल दिखा सकें। टीम मैनेजमेंट के साथ ही कप्तान धोनी को भी सोचना पड़ेगा कि टीम को आगे की सिरीजों में कैसे बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया जा सके। वैसे कप्तान धोनी के लिए ऐसा करना ज्यादा मुश्किल नहीं है, क्योंकि जब से उन्होंने टीम की बागडोर संभाली है, तब से जहां टीम पहली बार टेस्ट मैचों में 20 महीने तक शिखर पर रहने में काबयाब रही है तो वहीं टी-20 विश्वकप जीतने के साथ ही टीम इसी साल अपनी ज़मीन पर 1983 के बाद दूसरी बार वर्ल्डकप जीतने में भी कामयाब रही थी। अब इतनी बड़ी-बड़ी उपलब्धियों को हासिल करने वाले कप्तान के लिए टीम को वापस जीत की राह पर लौटाना कोई बहुत ज्यादा मुश्किल काम नहीं है।

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