Thursday 15 September 2011

अलविदा राहुल द्रविड़...


भारत के लिए 343 वनडे मैच खेलने वाले मिस्टर भरोसेमंद राहुल द्रविड़ कल यानि शुक्रवार को अपना आखिरी वनडे इंग्लैंड के खिलाफ कार्डिफ मैदान पर खेलने के लिए उतरेंगे। कई खेल समीक्षक इस विदाई को कप्तान धोनी की दरियादिली के तौर पर देख रहे हैं, क्योंकि उन्होंने इससे पहले पूर्व कप्तान सौरव गांगुली और अनिल कुंबले की विदाई को यादगार बना दिया था। याद रहे कि अनिल कुंबले को उन्होंने जहां मैच समाप्त होने के बाद अपने कंधे पर बैठाकर मैदान के बाहर तक पहुंचाया था तो वहीं गांगुली को उन्होंने आखिरी मैच के अंतिम लम्हों में कप्तानी करने का मौका देकर सभी को चौंका दिया था। इसी तरह से इस बार भी सभी उम्मीद कर रहे हैं कि धोनी भारत की इस दीवार को सम्मानजनक विदाई देंगे। यूं भी द्रविड़ बीते दो सालों से वनडे की टीम से बाहर चल रहे थे लेकिन उनके शानदार फॉर्म और भारतीय टीम के गिरते प्रदर्शन की वजह से टीम से न सिर्फ एकदिवसीय टीम में जगह दी गई बल्कि टी-20 में उन्हें हाथ आजमाने का मौका दिया। इसके बाद 38 साल के द्रविड़ ने दोनों संस्करणों में खेलने की हामी तो भर दी लेकिन लगे हाथ सीरीज समाप्त होते ही दोनों प्रारूपों से संयास लिये जाने की भी घोषणा कर दी।


द्रविड़ का आखिरी मैच उनके करियर का कुल मिलाकर 344वां मैच होगा, जिनमें अभी तक उन्होंने लगभग 40 के बेहतरीन औसत से 10820 रन बनाए हैं और इनमें 12 शतक और 82 अर्धशतक भी जड़े हैं। इसके अलावा द्रविड़ ने हर काम को बेहद खामोशी के साथ किया और टीम की जरूरत के हिसाब से विकेटकीपिंग तक की। भद्रजनों का खेल कहे जाने वाले इस खेल में  द्रविड़ उन गिने चुने खिलाड़ियों मे से भी रहे हैं जिन्होंने मैदान पर शायद ही कोई बखेड़ा खड़ा किया हो। अमूमन स्लीप पर फील्डिंग करने वाले राहुल की फुर्ती का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टेस्ट मैचों में उनके हाथों में 200 से ज्यादा कैच समा चुके हैं। इसके अलावा विदेशी पिचों पर उनको बैटिंग करते हुए सबसे ज्यादा मज़ा आता है क्योंकि द्रविड़ के अधिकतर रन देश में न होकर बाहर की पिचों पर हैं। मौजूदा सीरीज की बात करें तो राहुल का प्रदर्शन उनके नाम के मुताबिक नहीं रहा है क्योंकि उन्होंने चार मैचों में महज 13.75 की औसत से 55 रन ही बनाए है। लेकिन टी-20 में जिस तरह से आक्रमक अंदाज़ अपनाते हुए उन्होंने शानदार 31 रन बनाए थे उससे सभी इस बात का अंदाजा लगा रहे थे की द्रविड़ वनडे मैचों में भी इस तरह का प्रदर्शन करेंगे लेकिन यहां उनका बल्ला ज्यादा नहीं चल सका है। फिलहाल उनके पास अभी भी एक मौका बचा हुआ, अब देखना ये होगा कि वन डाउन पर बैटिंग करने वाले द वॉल इसे कैसे भुनाते हैं।

यहां ये भी उल्लेख करना जरूरी हो जाता है कि इस तरह की बात करने वालों की कोई कमी नहीं है और जो इस बात को सबके सामने कहने से नहीं कतराते हैं कि द्रविड़ को वो मकाम नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। विकेटकीपिंग  से लेकर गेंदबाज़ी तक में हाथ आजमा चुके राहुल को मीडिया ने भी कभी वैसा कवरेज नहीं दिया जो उनके साथ खेलने वाले दूसरे खिलाड़ियों को दिया गया है। कहा तो यहां तक जाता है कि द्रविड़ का टीम से पत्ता साफ करवाने में धोनी की बड़ी भूमिका थी। बहरहाल इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि द्रविड़ ने खामोशी के साथ टीम के लिए जो योगदान दिया है वो हर किसी के बस की बात नहीं है क्योंकि उन्होंने बगैर शिकायत के अपने काम को अंजाम दिया है। अलबत्ता ये बात और है कि उन्हें बिना कारण बताए हुए कई बार टीम से निकाल भी दिया गया लेकिन उनकी महानता को दर्शाने के लिए ये आंकड़ा काफी है कि वनडे में सबसे अधिक रन बनाने के मामले में वो सातवें नंबर पर हैं और उनके बाद लारा और जयवर्धने का नंबर आता है। खैर अब टीम के लिए दूसरे द्रविड़ की तलाश करना खासा मुश्किल हो सकता है क्योंकि बीते दो साल में तीसरे नंबर पर खेलते हुए सुरेश रैना, विराट कोहली, रोहित शर्मा समेत कई नामों को देखा जा चुका है लेकिन अभी तक किसी को भी इस पोजीशन का पक्का हक़दार नहीं माना जा सकता है। 

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