Wednesday 21 September 2011

गरीबों के साथ मज़ाक


लगता है कि सरकार को हर साल गरीबों की नई परिभाषा बताने की आदत पड़ चुकी है, तभी तो हर साल कोई न कोई नया आंकड़ा इस संबंध में जारी कर दिया जाता है। ताजा वाक्या ये है कि अब देश के उस तबके के लोगों को गरीब नहीं समझा जाएगा जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए 26 रूपए खर्च करते हैं। दरअसल ये अजीबो-गरीब आंकड़ा योजना आयोग की तरफ से जारी किया गया है जिसमें बताया गया है कि यदि शहर में रहने वाला व्यक्ति 32 रूपए और देहात में रहने वाला आदमी रोज़ाना 26 रूपए खर्च करता है तो उसे किसी भी कीमत पर गरीब नहीं माना जा सकता है। उल्लेखनिए है कि सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका पर कई बार योजना आयोग से इस सिलसिले में जबाव मांग चुका था, लेकिन कई बार की टालमटोली के बाद आखिरकार सरकार की तरफ से इस आंकड़े को अदालत के सामने पेश कर दिया गया है। 

अगर सीधे शब्दों में इस मामले को समझाने का प्रयास किया जाए तो आयोग ने ये बताने की कोशिश की है कि शहरों में 965 रुपये और गांवों में 781 रुपये प्रति महीना खर्च करने वाला शख्स गरीब रेखा के दायरे में नहीं रखा जा सकता है। शायद इस अजीब तरह के आंकड़े को पेश करके योजना आयोग ये बताने की फिराक में लगा हुआ है, कि इस तरह के लोग बीपीएल कार्ड के दायरे में आने के हक़दार नहीं है। बताते चलें कि इस रिपोर्ट को योजना आयोग ने कोर्ट में बतौर हलफनामें के पेश किया है। ऐसा नहीं है कि गरीबों की चिंता करने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इससे अंजान हों क्योंकि रिपोर्ट पर उन्होंने खुद हस्‍ताक्षर किए हैं। अब इसे क्या कहा जाए कि जिस देश में महंगाई ने हर तरफ आग लगा रखी हो उस देश में किस आधार इतने कम पैसे खर्च करने वाले को गरीब नहीं समझा जा सकता है। जब पीएम खुद इस मुद्दे पर योजना आयोग से सहमत हैं, तो फिर किस सरकारी नुमाइंदे से गरीब जनता उम्मीद रख सकती है। वहीं अगर रिपोर्ट को विस्तार से पढ़ा जाए तो एक दिन में एक आदमी 5.50 रुपये दाल पर, 1.02 रुपये चावल-रोटी पर, 2.33 रुपये दूध, 1.55 रुपये तेल, 1.95 रुपये, सब्‍जी 44 पैसे फल पर 70 पैसे चीनी पर 78 पैसे नमक व मसालों पर 1.51 पैसे खर्च करने के साथ ही अगर ईंधन पर 3.75 पैसे खर्च करता है तो वह आराम से स्‍वस्‍थ्‍य जीवन जी सकता है। आयोग के मुताबिक कोई भी व्यक्ति अपनी हेल्थ पर 39.70 रुपये प्रति महीने खर्च करके स्वस्थ रह सकता है। वहीं एजुकेशन की गुत्थी को भी आयोग ने सुलझाते हुए बताया है कि 99 पैसे प्रतिदिन खर्च करते हैं तो आप शिक्षा के क्षेत्र में भी गरीब नहीं कहलाएंगे। और यदि आप कुल मिलाकर पूरे महीने में 100 रूपए अपने पर्सनल सामानों पर खर्च कर सकते हैं तो भी आपको गरीब कहलाने का कोई हक़ नहीं है।

इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि जिन आंकड़ों के सहारे सरकार ने देश के बड़े तबके को गरीब मानने से इंकार किया है वो खुद उसी के लिए शर्मनाक बात है। असल में आंकड़ेबाजी का खेल खेलने में तो सरकार पहले से आगे रही है लेकिन अपना हाथ आम आदमी के साथ का नारा देने वाली कांग्रेस पार्टी ने उन गरीबों के साथ मजाक किया है जो पहले ही रोज़ ब रोज़ अपनी थाली के घटने से परेशान हैं। महंगाई जिस तेज़ी के साथ गरीबों की नींद हराम कर रही है उससे ज्यादा परेशानी अब इस बात को लेकर बढ़ जाएगी कि अगर वो एक वक्त का खाना सही तरह से खा लेते हैं तो सरकार उन्हें गरीब नहीं मानेगी। अब ये गरीब के साथ मजाक नहीं तो और क्या है क्योंकि यहां सवाल ये खड़ा होता है कि क्या इस देश में किसी शख्स को भरपेट खाना खाने का भी हक़ नहीं है। सरकार की तरफ से गरीबों के साथ ये छलावा नहीं तो और क्या हैं क्योंकि इस दौर में जहां हर चीज़ के दाम आसमान छू रहे हैं तो ऐसे में इतने कम पैसों में गरीबी की दलदल में जिंदगी गुज़ार रहे लोग 26 रूपए खर्च करके कैसे इस श्रेणी से बाहर रखे जा सकते हैं फिलहाल ये बात जनता के साथ ही हमारे लिए भी समझना मुश्किल है।  

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