Wednesday 14 September 2011

फिर दहला देश का दिल


देश की राजधानी दिल्ली को एक बार फिर आतंकियों के नापाक मंसूबों का शिकार होना पड़ा। दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर बुधवार यानि 7 सितंबर को विस्फोट ठीक कोर्ट की कार्यवाई शुरू होने के वक्त तकरीबन 11 बजे गेट नंबर 4 और 5 के बीच में हुआ था। धमाका इतना जबर्दस्त था कि मौके पर ही दर्जनों लोगों को मौत का निबाला बनना पड़ा। इसके अलावा हादसे में सैकड़ों लोगों बुरी तरह से जख्मी भी हो गए। हादसे के बाद हमेशा की तरह ही जांच एजेंसियों को इसके कारणों का पता लगाने के लिए लगा दिया गया है लेकिन हैरानी की बात ये है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इस मामले को सुलझाने में लगी हुई है लेकिन पुख्ता सबूत के नाम पर उसके हाथ विस्फोट के कई दिन बीत जाने के बावजूद भी खाली हैं। वैसे एनआईए की टीम मामले को सुलझाने में एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं लेकिन अभी तक जो तस्वीर उभरकर सामने आ रही है उसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता है। अलबत्ता ये बात और है कि प्रत्यक्षदर्शियों के बताए गए हुलिए पर दो स्क्रैच भी जारी किये गए जिसमें एक व्यक्ति को 20 साल के नीचे बताया गया तो दूसरे की उम्र 50 साल के आसपास बताई गई। इसके अलावा हमले का सुराग देने वाले को भी 5 लाख रूपए बतौर ईनाम देने की घोषणा की गई लेकिन इससे भी कुछ खास फायदा नहीं हुआ।


याद रहे कि दिल्ली उच्च न्यायालय के पास ही करीब छह महीने पहले भी एक विस्फोट हुआ था, लेकिन विस्फोट इतना मारक नहीं था कि उसमें कोई हताहत हो सके। कई जानकार उस धमाकों को इस विस्फोट की रिहर्सल के तौर पर भी देख रहे हैं। अब ये बात सही भी हो सकती है क्योंकि उस समय इस धमाकों को मामूली बताकर भुला दिया गया था, लेकिन इस बार आतंकियों ने सुरक्षा व्यवस्था को तार–तार करते हुए धमाके अंजाम दे डाला और तमाम मासूमों की जान ले ली। वहीं इससे पहले देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में भी दो महीने पहले 13 जुलाई 2011 शाम के तकरीबन 7 बजे के आसपास तीन ज़बर्दस्त बम धमाके हुए थे जिसमें कम से कम 17 लोग मारे गए थे और 131 लोग बुरी तरह से घायल हो गए थे। उसके बाद भी सुरक्षा एजेंसियों ने कहा था कि हमले के बाबत उनके पास कोई पुख्ता जानकारी मौजूद नहीं थी। और इस बार भी एजेंसियों का यही कहना है कि उनके पास इस हमले से जुड़ी हुई कोई खास जानकारी नहीं थी। तब भी गृहमंत्रालय ने ये कहते हुए एजेंसियों का बचाव किया था कि  इस हमले के लिए वो इंटेलीजेंस की चूक नहीं मान सकते हैं। बताते चलें कि राजधानी क्षेत्र में पिछले 15 सालों में इतने ही बम धमाके हो चुके हैं लेकिन हमारी सरकार इनको कम बताकर अपनी पीठ थपथपा लेती है। और तो और अगर देश में हाल ही में हुए बम धमाकों पर नज़र दौड़ाई जाए तो 2011 में मुंबई और दिल्ली, 2010 में वाराणसी और पुणे और 2008  में मुंबई, असम, इम्फाल, मालेगांव, मोदासा, दिल्ली, अहमदाबाद, जयपुर और रामपुर जैसे इलाकों में भी धमाके हुए लेकिन इन धमाकों को अंजाम देने के नाम पर गिने चुने लोग ही गिरफ्त में आ सके। यहां तक कि इसी साल जुलाई में मुंबई में हुए धमाकों में तो अब तक कोई गिरफ़्तारी भी नहीं हो सकी है। इसकी के साथ मुंबई में 2006 में लोकल ट्रेनों में हुए धमाकों कोई शायद ही भूल पाए जब लमसम एक ही समय पर हुए सात विस्फोटों 200 से भी अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। वहीं मुंबई पर हुए आतंकी हमले को कौन भूल पाएगा जिसमें 10 हमलावरों ने ताज होटल समेत कई स्थानों को अपने कब्जे में लिया था और सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। इन हमलों को करने वालों में से एक को जिंदा पकड़ लिया गया था जो अभी भी जेल में बंद है। करोड़ों रूपए की सुरक्षा मे रखे गए इस आतंकी की इस खातिरदारी पर कई सामाजिक और राजनैतिक दल सवाल भी उठा चुके हैं।

चलिए इससे आगे बढ़ते हैं क्योंकि इस तरह के हमलों के बाद ज़िम्मेदार लोग किस तरह से अपना दामन बचाने की जुगत में लग जाते हैं ये बताना भी बेहद जरूरी है। दरअसल हमले के बाद केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि हम  कोशिश कर रहे हैं कि धमाके के लिए जिम्मेदार लोगों का पता लगाकर उन्हें सज़ा दिलाई जाए। इस आश्वासन के बाद उन्होंने लोगों को सतर्क रहने का आग्रह करते हुए बताया कि तमाम प्रयासों के बावजूद भी कोई ये नहीं कह सकता कि अब आगे इस तरह के आतंकी हमले नहीं होंगे। इस बयान से साफ पता चल रहा है कि गृहमंत्री इस बयान के सहारे अपना दामन बचाने की कोशिश में लगे हुए है। असल में वो शायद ये बताना चाह रहे हैं कि अगर अगली बार कोई हमला हुआ तो सरकार इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं होगी, क्योंकि उन्होंने पहले ही सबको सचेत रहने को कहा था। फिलहाल धमाके के बाद आए कई ई-मेल की बाबत बताते हुए उन्होंने कहा कि तीसरे मेल ज्यादा गंभीर नजर नहीं आ रहा है लेकिन फिर भी इसकी जांच गहनता से की जा रही है और गुजरात सरकार के साथ ही अहमदाबाद पुलिस को भी अलर्ट कर दिया गया है। बकौल चिदंबरम उन्हें वाराणसी और बेंगलूरु में हुए धमाकों लिए  आरोपी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि उन्होंने खुफिया जानकारियां उपलब्ध कराईं थीं। वहीं इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी दिल्ली हाईकोर्ट में हुए धमाके के बाद कहा था कि आतंकवादी हमारी सुरक्षा व्यवस्था में मौजूद खामियों का फायदा उठा रहे हैं। इसी लिए युवाओं में कट्टरता की भावना को पनपने से रोकने के साथ ही खुफिया जानकारियां जुटाने की प्रक्रिया को भी चुस्त किये जाने की जरूरत है।
दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय एकता परिषद यानि एनआईसी की 15वीं बैठक में भी प्रधानमंत्री ने कहा, कि दिल्ली में हुए विस्फोट ने ये साबित कर दिया है, कि खुफिया मामलों में ज़रा सी चूक भी  भारी पड़ सकती है। अब जब पीएम खुद ही मान रहे हैं कि ज़रा सी चूक भी ख़तरनाक साबित हो सकती है तो फिर इससे बचने के लिए इंतजाम क्यों नहीं किये जाते हैं। वहीं जब दिल्ली जैसी जगह में हाईकोर्ट तक सुरक्षित नहीं है जहां से संसद और राष्ट्रपति भवन नजदीक है तो फिर मुल्क में किस जगह को सुरक्षित माना जा सकता है। इसलिए सिर्फ बयानबाजियों के सहारे अपना काम चलाने से ज्यादा जरूरी है ज़मीनी स्तर पर सुधार किये जाएं ताकि मुल्क में लोग खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।

लेकिन सबसे अधिक दुख तो इस बात को लेकर होता है कि जिन लोगों को अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए आगे आना चाहिए वो ही लोग बेसिर-पैर की बातें करके इस तरह के मामलों की गंभीरता समाप्त कर देते हैं। इस कड़ी में सबसे पहले बात करते हैं पर्यटन मंत्री सुबोकांत सहाय की जिंहोंने हमले के बाद अपने ख्याल कुछ इस तरह से ज़ाहिर किये जिसे सुनकर शायद ही किसी देशवासी को गुस्सा न आए। पहले से ही अपने ऊटपटांग बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले सहाय ने कहा कि अब लोग इस तरह के माहौल में जीने के आदी हो चुके हैं। अब इसे क्या कहा जाए कि दर्जनभर से ऊपर लोग मारे जा चुके हैं लेकिन मंत्री जी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनके मुताबिक लोग अब इसके आदी हो चुके हैं। वैसे तीन महीने पहले भी जब मुंबई में तीन जगह धमाके हुए थे तो मंत्रीजी ने विस्फोट की जानकारी मिलने के बाद भी फैशन शो का आनंद लेना ही ज्यादा बेहतर समझा था। हद तो तब हो गई थी जब इस धामके पर अपनी प्रतिक्रिया में कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने कह दिया था, कि इस तरह के हमले तो अमेरिका जैसे देशों को भी झेलने पड़ते हैं इसलिए इनके ऊपर पूरी तरह से काबू पाना संभव नहीं और कुछ हमले तो देश को झेलने ही होंगे। जिस तरह से इन नेताओं के बयान हैं, उससे ये पूरी तरह से साफ हो जाता है कि हमारे नेता अपने दर्द की तुलना दूसरे के दुख से करके ज्यादा खुश रहते हैं। अगर ठीक से याद हो तो अमेरिका पर 2001 में हुए हमले के बाद किसी भी तरह की आतंकी कार्यवाई को नहीं झेलना पड़ा है। लेकिन हमारे सफेदपोश को सिर्फ यही याद रहता है कि अमेरिकी भी इस तरह की दिक्कत को झेल चुका है लेकिन उसके बाद उसने इसे किस तरह से रोका इसे कोई नहीं जानना चाहता है।
बहरहाल विस्फोट के बाद एनआईए के टीम के साथ ही सीएफएसल टीम फॉरेंसिक जानकारियां इकट्ठा करने में जुट गई है। सरकार ने भी हाईकोर्ट के आसपास सभी जगह सीसीटीवी कैमरे लगवाने की बात कहकर ये साबित करने की कोशिश कर दी है कि वो इस तरह के हमलों से कितनी अधिक चिंतित है। वहीं पुलिस भी यहां वहां पोस्टर चिपकार संदिग्धों की पहचान करने का प्रयास कर रही है, लेकिन फिलहाल उसके हाथ भी खाली हैं। सरकार कहती तो है कि सुरक्षा के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता लेकिन जब इस तरह के हमलों से दो चार होना पड़ता है तो ये आइने की तरह साफ हो जाता है कि सबकुछ महज खानापूर्ती के लिए ही किया जा रहा है।  

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