Saturday 15 October 2011

गज़ल किंग जगजीत सिंह



गज़ल गायकी को एक अलग अंदाज़ देने वाले जगजीत सिंह का सुरीला सफर 10 अक्टूबर को ठहर गया। ब्रेन हेमरेज के बाद मुंबई के लीलावती अस्पताल में करीबन दो सप्ताह तक मौत से लड़ाई लड़ने वाले जगजीत सिंह आखिरकार हमें अलविदा कहकर उस देश को चले गए जहां न कोई चिठ्टी और न ही कोई संदेश पहुंच सकता है। महज 70 साल की उम्र में ही हमसे नाता तोड़कर जाने वाले जगजीत सिंह का जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर में 8 फ़रवरी 1941 को हुआ था। परिवार के लोगों ने शुरू में जगजीत सिंह का नाम जगमोहन रखा था, लेकिन एक ज्योतिषी की सलाह पर इसे बदल कर जगजीत कर दिया गया था। इसके बाद जगजीत ने ग़जलों में रूचि लेना शुरू किया और संगीत की शिक्षा हासिल करने के बाद वो साठ के दशक में अपनी किस्मत आजमाने के लिए मायनगरी में आ गए। बस यहीं से जो गायकी का सफर शूरू हुआ तो उसने कभी भी रूकने का नाम नहीं लिया बल्कि रोज़ ब रोज़ उनकी प्रसिद्धि देश के साथ–साथ विदेशों में भी फैलने लगी। गज़ल के क्षेत्र में अपनी खास जगह बनाने के बाद जगजीत ने अपनी दोस्त चित्रा से शादी कर ली, शादी के बाद उनके घर में एक बेटा का जन्म भी हुआ लेकिन दर्द के इस पुजारी को यहां भी जिंदगी ने एक और बड़ा सदमा देते हुए उनसे उनका 19 साल का बेटा छीन लिया। ग़मों के इस सैलाब से उबरते हुए जगजीत ने वापस अपनी आवाज़ का जादू बिखरने शूरू तो किया लेकिन उनकी पत्नी को अपने बेटे के खोने का इतना बड़ा सदमा लगा कि उन्होंने गज़लें गाना बिल्कुल बंद कर दिया। बेटे की मौत के बाद जगजीत सिंह ने काफी हद तक उन्हें संभाला था लेकिन अब उनके जाने के बाद चित्रा के लिए खुद को संभाल पाना आसान नहीं होगा।

इधर जैसे ही जगजीत सिंह की मौत की ख़बर वॉलीबुड के लोगों को लगी तो तमाम लोगों ने न सिर्फ इसे बड़ी क्षति बताया बल्कि यहां तक कहा कि गज़ल गायकी का एक पूरे का पूरा अध्याय समाप्त हो गया है। मशहूर गायिका लता मंगेशकर ने जगजीत की मौत पर गहरा अफसोस करते हुए कहा कि गज़ल गायकी में उनके स्टाइल, उनका गाने का तरीका, अच्छी शायरी को सामने लाने की कला अब नहीं दिखाई नहीं देगी क्योंकि किसी में भी उनके जैसे बात नहीं है। इसी तरह से बीते ज़माने के एक्टर फारूक शेख मानते हैं कि गज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था। अभिनेता रज़ा मुराद भी मानते हैं कि जगजीत सिंह ने गज़लों को पूरी दुनिया में नाम दिलाया। बकौल मुराद पहले वो मानते थे कि गज़लें सिर्फ बुढ़े लोगों के लिए होती हैं लेकिन उन्होंने ऐसी गज़लें पेश की जिन्होंने नौजवानों के दिल में भी खासी जगह बनाई। सरहद पार यानि पाकिस्तान की मशहूर सूफ़ी गायिका आबिदा परवीन ने भी खुद को जगजीत सिंह की बड़ी फैन बताते हुए उन्हें जग के जीत का नाम दिया। वाकई संगीत की परख रखने वालों के साथ ही आम आदमी के ज़ेहन में भी जगजीत की गज़लें आसानी से अपनी जगह बना लेती थीं। आज के दौर में जबकि संगीत में कई तरह की विधाएं देखने को मिल रहीं हैं जैसे पॉप संगीत और रीमिक्स संगीत लेकिन जगजीत की गज़लों की लोकप्रियता इन सबके बावजूद न सिर्फ बनी हुई है बल्कि दिनों दिन इनको सुनने वालों की तादाद भी बढ़ती जा रही है।
    
बहरहाल होठों से छू लो तुम..., ये दौलत भी ले लो..., होशवालों को खबर क्या..., हजारों ख्वाहिशें ऐसी..., हाथ छूटे भी तो..., वो कागज़ की कश्ती, मैं नशे में हूं जैसी बेशुमार सुरीली गजलों को पेश करने वाले जगजीत सिंह के चले जाने से संगीत को वास्तव में बहुत बड़ी क्षति हुई है। ख़ैर भले ही जगजीत सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे हों लेकिन उनकी यादगार गज़लें हमेशा हमारे साथ बनी रहेंगी। महान गज़ल गायक को हमारी तरफ से आखिरी सलाम।

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