Thursday 23 May 2013

अरूणिमा का हौसला

अगर किसी काम को जुनून की हद से गुजरकर किया जाए तो उसके पूरा होने में भगवान भी पूरी शिद्दत से मदद करते हैं। ऐसा ही अविश्वसनिए कारनामा किया है उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर अंबेडकर नगर की रहने वाली 25 साल की पर्वतारोही अरूणिमा ने, जिन्होंने दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर एवरेस्ट को फतह कर लिया है। अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें नया क्या है क्योंकि अब तक हज़ारों की तादाद में लोग इस चोटी पर पहुंचकर सफलता का झंडा लहरा चुके हैं। लेकिन अरूणिमा की बात सबसे अलग इसलिए हो जाती है, क्योंकि उन्होंने एक पैर के बूते दुनिया की इस सबसे उंची चोटी पर चढ़कर विकलांगता की परिभाषा को ही बदलकर रख दिया है।

उल्लेखनिए है कि अरूणिमा नेशनल स्तर की पूर्व महिला वॉलिबाल और फुटबॉल खिलाड़ी रह चुकी है, लेकिन 2011 में कुछ बदमाशों ने उससे लूटपाट करते हुए ट्रैन से नीचे फैंक दिया था। इस हादसे में बेशक अरूणिमा सिन्हा ने अपना एक पैर खो दिया हो, मगर उनका हौसला कोई नहीं तोड पाया। बिस्तर से उठकर उन्होंने टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के प्रमुख बछेंद्री पॉल से संपर्क साधा था और विशेष ट्रैनिंग हासिल की। प्रशिक्षण के बाद अरूणिमा ने लद्दाख में 6,622 मीटर की ऊंचाई पर सफलतापूर्वक चढकर अपना इरादा जता दिया था। लेकिन अरूणिमा यहीं नहीं रूकना चाहती थी बल्कि वो विकलांगता के शिकार लोगों को सीख देना की चाह में 8,848 मीटर ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर तमाम परेशानियों को पीछे छोड़ते पहुंच गईं। बताते चलें कि इतनी ऊंची चोटी पर आजतक कोई भी भारतीय विकलांग महिला नहीं पहुंच पायी है। इस जीत की खुशी व्यक्त करते हुए अरूणिमा कहती हैं कि दुर्घटना के बाद सभी उनके बारे में ही सोचते रहते थे और तभी उन्होंने ये ठान लिया था, कि वो कुछ ऐसा करेंगी जिसके बाद लोग उनको दया भरी नजरों से देखना बंद कर देंगे। वाकई अरूणिमा ने अपनी सपने को अमलीजामा पहनाते हुए इतना बड़ा काम कर दिया जो अपने आप में एक मिसाल है।   


गौरतलब है कि 52 दिन के इस अभियान में अरूणिमा ने 21 मई की सुबह 10.55 मिनट पर एवरेस्ट की चोटी को फतेह किया। यूं भी हिमालय में पर्वतारोहण के लिए इस महीना को सबसे बेहतर माना जाता है। महत्वपूर्ण बात ये है कि इस साल ही अब तक तकरीबन 300 लोग दुनिया की इस सबसे ऊंची चोटी पर चढ़ाई कर चुके हैं। सबसे पहले ब्रिटेन के विकलांग पर्वतारोही टॉम व्हिटेकर ने 1998 में एवरेस्ट पर विजय हासिल की थी। बहरहाल जिस तरह से अरूणिमा ने अपनी लाचारी को कामयाबी में बदला है, वो वाकई अदभुत और अदम्य साहस का प्रतीक है। 

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